Tuesday, December 30

बिलकुल! आपके कंटेंट को समाचार-पत्र की शैली में प्रभावशाली और पठनीय हिंदी में इस तरह लिखा जा सकता है: — ### POCSO कानून में ‘लोक सेवक’ की परिभाषा तय करेगी सुप्रीम कोर्ट **उन्नाव रेप मामला: कुलदीप सिंह सेंगर जेल में ही रहेंगे, हाई कोर्ट के सजा निलंबन आदेश पर शीर्ष अदालत ने लगाई रोक** **नई दिल्ली:** सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें 2017 के उन्नाव रेप मामले में बीजेपी से निष्कासित नेता **कुलदीप सिंह सेंगर** की उम्रकैद की सजा को सस्पेंड किया गया था। अब सेंगर जेल से रिहा नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस **जे.के. महेश्वरी** ने इस मामले में सवाल उठाया कि हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट क्यों नहीं किया कि सेंगर **IPC की धारा 376(2)(i)** के तहत दोषी हैं या नहीं। अब इस मामले में आगे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी, जिसमें यह तय किया जाएगा कि **POCSO कानून के तहत ‘लोक सेवक’ की परिभाषा क्या होगी** और ऐसे मामलों में सजा निलंबन के मानदंड क्या होने चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़िता को **विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करने का पूर्ण अधिकार** है और इसके लिए उसे सुप्रीम कोर्ट से कोई अलग अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। यदि पीड़िता को कानूनी मदद की जरूरत हो, तो **सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमिटी** उसे नि:शुल्क कानूनी सहायता प्रदान करेगी। पीड़िता अपने स्वयं के वकील के माध्यम से भी अपील दायर कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने अपने तर्क में **एल.के. आडवाणी मामले** का हवाला दिया। इसमें कहा गया कि सांसद या विधायक जैसे **सार्वजनिक पद धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘लोक सेवक’ माना जाएगा**। सीबीआई ने यह भी बताया कि हाई कोर्ट ने यह गलत निर्णय लिया कि अपराध के समय विधायक रहे सेंगर को **POCSO अधिनियम के तहत लोक सेवक नहीं माना जा सकता**, और उन्हें निलंबन प्रदान किया। सीबीआई ने हाई कोर्ट की व्याख्या को भी चुनौती दी और कहा कि एक वर्तमान विधायक **राज्य और समाज के प्रति उच्च स्तर की जिम्मेदारी और जनता के विश्वास के अधिकारी** होते हैं। POCSO अधिनियम का उद्देश्य और मंशा ऐसे अपराधों में सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करना है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला POCSO अधिनियम की व्याख्या और ‘लोक सेवक’ की कानूनी परिभाषा दोनों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। — अगर आप चाहें तो मैं इसे और **अखबार के फ्रंट पेज के लिए आकर्षक हेडलाइन और सबहेडलाइन के साथ संक्षिप्त संस्करण** भी तैयार कर दूँ, जो सीधे प्रकाशन के लिए इस्तेमाल हो सके। क्या मैं वह संस्करण भी बना दूँ?

 

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें 2017 के उन्नाव रेप मामले में बीजेपी से निष्कासित नेता कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा को सस्पेंड किया गया था। अब सेंगर जेल से रिहा नहीं होंगे।

 

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे.के. महेश्वरी ने इस मामले में सवाल उठाया कि हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट क्यों नहीं किया कि सेंगर IPC की धारा 376(2)(i) के तहत दोषी हैं या नहीं। अब इस मामले में आगे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी, जिसमें यह तय किया जाएगा कि POCSO कानून के तहत ‘लोक सेवक’ की परिभाषा क्या होगी और ऐसे मामलों में सजा निलंबन के मानदंड क्या होने चाहिए।

 

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़िता को विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करने का पूर्ण अधिकार है और इसके लिए उसे सुप्रीम कोर्ट से कोई अलग अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। यदि पीड़िता को कानूनी मदद की जरूरत हो, तो सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमिटी उसे नि:शुल्क कानूनी सहायता प्रदान करेगी। पीड़िता अपने स्वयं के वकील के माध्यम से भी अपील दायर कर सकती हैं।

 

सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने अपने तर्क में एल.के. आडवाणी मामले का हवाला दिया। इसमें कहा गया कि सांसद या विधायक जैसे सार्वजनिक पद धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘लोक सेवक’ माना जाएगा। सीबीआई ने यह भी बताया कि हाई कोर्ट ने यह गलत निर्णय लिया कि अपराध के समय विधायक रहे सेंगर को POCSO अधिनियम के तहत लोक सेवक नहीं माना जा सकता, और उन्हें निलंबन प्रदान किया।

 

सीबीआई ने हाई कोर्ट की व्याख्या को भी चुनौती दी और कहा कि एक वर्तमान विधायक राज्य और समाज के प्रति उच्च स्तर की जिम्मेदारी और जनता के विश्वास के अधिकारी होते हैं। POCSO अधिनियम का उद्देश्य और मंशा ऐसे अपराधों में सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करना है।

 

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला POCSO अधिनियम की व्याख्या और ‘लोक सेवक’ की कानूनी परिभाषा दोनों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।

 

 

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