Tuesday, December 30

बिना इंजन के समंदर में रवाना हुआ भारतीय नौसेना का ऐतिहासिक जहाज INSV कौंडिन्य

 

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IIT मद्रास की तकनीकी मदद और प्राचीन नौकायन कला से तैयार, संजीव सान्याल ने बताया इसका ऐतिहासिक महत्व

 

नई दिल्ली: भारतीय नौसेना का ऐतिहासिक पोत INSV कौंडिन्य 20 दिसंबर को गुजरात के पोरबंदर से ओमान की राजधानी मस्कट के लिए अपनी पहली समुद्री यात्रा पर रवाना हो गया। यह जहाज बिना इंजन और आधुनिक प्रणोदन प्रणाली के केवल पाल और हवा के सहारे समुद्र की यात्रा करेगा।

 

यह जहाज भारतीय प्राचीन समुद्री मार्गों का पुनर्मूल्यांकन करता है, जो सदियों पहले भारत को पश्चिम एशिया से जोड़ते थे। इस यात्रा का उद्देश्य न केवल समुद्री यात्रा का अनुभव है, बल्कि इतिहास, शिल्पकला और आधुनिक नौसैनिक विशेषज्ञता का अनोखा संगम भी प्रस्तुत करना है।

 

पाँचवीं शताब्दी की तकनीक से निर्मित जहाज

INSV कौंडिन्य को 5वीं शताब्दी ईस्वी की जहाज निर्माण तकनीक से तैयार किया गया है। इसे “सिला हुआ जहाज” कहा जाता है क्योंकि लकड़ी के तख्तों को नारियल के रेशे की रस्सियों से जोड़ा गया है और प्राकृतिक रेजिन, कपास व तेलों से सील किया गया है। इसमें धातु का उपयोग नहीं किया गया है, जिससे यह जहाज लहरों की ऊर्जा को आसानी से सोख लेता है।

 

कर्नाटक के कारवाड़ में नौसेना में शामिल

मई 2025 में INSV कौंडिन्य को कर्नाटक के कारवाड़ नौसैनिक अड्डे में औपचारिक रूप से नौसेना में शामिल किया गया। यह एक गैर-लड़ाकू पोत है और इसके चालक दल में 15 नाविक हैं, जिन्हें पारंपरिक नौकायन परिस्थितियों में पोत संचालित करने का प्रशिक्षण दिया गया है।

 

आधुनिक विज्ञान और प्राचीन ज्ञान का संगम

INSV कौंडिन्य के निर्माण में IIT मद्रास जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं की मदद ली गई। जहाज की स्थिरता और जलगतिकीय परीक्षण इनके सहयोग से किए गए। मास्टर शिपराइट श्री बाबू शंकरन के नेतृत्व में केरल के पारंपरिक कारीगरों ने इसे बनाया। जहाज पर कदंब वंश का दो सिर वाला गंडभेरुंडा, पौराणिक सिंह आकृति, सिंह याली और हड़प्पा शैली का प्रतीकात्मक पत्थर का लंगर अंकित हैं।

 

संजीव सान्याल ने बताया ऐतिहासिक महत्व

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने कहा कि यह परियोजना केवल तकनीकी प्रयोग नहीं है, बल्कि भारतीय सभ्यता और समुद्री व्यापार की गौरवपूर्ण धरोहर को उजागर करने वाला प्रयास है। उन्होंने बताया कि भारत के नाविक, व्यापारी और साहसी यात्रियों ने हिंद महासागर में फोनीशियनों से पहले ही समुद्री यात्रा और व्यापार स्थापित किया।

 

INSV कौंडिन्य की यह यात्रा न केवल भारत और ओमान के समुद्री संबंधों को पुनर्जीवित करेगी, बल्कि प्राचीन भारत की साहसिक नौकायन और व्यापारिक संस्कृति को भी दर्शाएगी।

 

 

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