
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा पर 20 नवंबर का अपना फैसला वापस ले लिया है। कोर्ट ने प्रस्ताव रखा है कि इस विषय में एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति बनाई जाए, जो पूरी तरह वैज्ञानिक और तकनीकी आधार पर अंतिम निर्णय करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा से कहीं संरचनात्मक विरोधाभास तो नहीं पैदा हो गया है और क्या इससे गैर-अरावली क्षेत्रों का दायरा बढ़कर अनियंत्रित खनन को बढ़ावा तो नहीं मिल रहा।
समिति के काम और उद्देश्य
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि समिति उन क्षेत्रों की पहचान करेगी, जिन्हें अरावली से बाहर रखा जा सकता है। साथ ही यह सुनिश्चित करेगी कि प्राकृतिक पर्यावरण और पारिस्थितिक संतुलन को कोई नुकसान न पहुंचे।
अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि और वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. परमेश्वर से समिति की संरचना पर सुझाव मांगे हैं। राज्यों को निर्देश दिया गया है कि तब तक किसी भी खनन गतिविधि की अनुमति न दी जाए।
पांच मुख्य सवाल, जिन पर एक्सपर्ट राय मांगी गई
- क्या वर्तमान परिभाषा (दो या दो से अधिक अरावली पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के क्षेत्र तक) संरचनात्मक विरोधाभास पैदा कर रही है, जिससे संरक्षित क्षेत्र का भौगोलिक दायरा कम हो गया?
- क्या इस परिभाषा के कारण कुछ भू-भाग ‘गैर-अरावली’ क्षेत्रों में आ गए हैं, जिससे खनन और अन्य हानिकारक गतिविधियों की सुविधा बढ़ गई?
- क्या दूर-दूर स्थित पहाड़ियां भी पर्यावरणीय संतुलन, वन्यजीव मार्ग और जल प्रवाह को जोड़कर रखती हैं, और इन्हें एकीकृत संरचना माना जाना चाहिए?
- क्या रेग्युलेटेड खनन की अनुमति दी जा सकती है और इसके लिए कौन-से स्थानिक मानदंड अपनाए जाएं ताकि पारिस्थितिक संतुलन सुरक्षित रहे?
- क्या छोटी और कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां पर्यावरण संरक्षण से बाहर न रह जाएं, और सभी पहाड़ियों की वैज्ञानिक जांच कर सही ऊंचाई मापी जाए?
समिति की सिफारिशें
सिफारिश की गई है कि ऊंचाई 100 मीटर से अधिक वाली चोटियों को अरावली में शामिल किया जाए। यदि दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियां 500 मीटर के भीतर हों, तो उन्हें अरावली पर्वतमाला माना जाएगा। इसमें आसपास की भू-आकृतियां और प्राकृतिक ढाँचा भी शामिल होंगे।
विरोध और चिंता
क्लाइमेट एक्टिविस्ट का कहना है कि अगर नई परिभाषा में केवल ऊंचाई वाली पहाड़ियों को शामिल किया गया, तो 90% से ज्यादा पहाड़ियां अरावली से बाहर रह जाएंगी, जिससे अनियंत्रित खनन और रियल एस्टेट परियोजनाओं के लिए रास्ता खुल जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम अरावली पर्वतमाला की पारिस्थितिक अखंडता को सुरक्षित रखने और विनियमित खनन के बीच संतुलन बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।