Thursday, November 6

कौन हैं रंगीली सखी महाराज? प्रेमानंद महाराज के सामने आसन पर बैठकर की आध्यात्मिक चर्चा

मथुरा | ज्योति शर्मा
वृंदावन के श्रीहित राधा केली कुंज में बुधवार को एक अद्भुत आध्यात्मिक दृश्य देखने को मिला। यहां दो महान रसिक संतों — प्रेमानंद महाराज और राधा मोहन दास भक्तमाली महाराज, जो प्रेम से “रंगीली सखी महाराज” के नाम से विख्यात हैं, के बीच भक्ति और अध्यात्म से ओतप्रोत गहन संवाद हुआ।

इस मुलाकात में श्रीराधा-कृष्ण की भक्ति, संतों में एकता और समाज में प्रेम के प्रसार पर चर्चा हुई। वृद्धावस्था के कारण रंगीली सखी महाराज को प्रेमानंद महाराज के सामने आसन (कुर्सी) पर बैठने की विशेष अनुमति दी गई — जो परंपरागत रूप से एक असाधारण सम्मान माना जाता है। यही दृश्य अब पूरे ब्रज में चर्चा का विषय बन गया है।

कौन हैं रंगीली सखी महाराज?

रंगीली सखी महाराज, जिनका वास्तविक नाम राधा मोहन दास भक्तमाली महाराज है, श्रीराधा-कृष्ण की मधुर भक्ति परंपरा के एक पूज्य और रसिक संत हैं।
वे स्वयं को श्रीराधा रानी की सखी मानते हुए ‘सखी भाव’ से भजन, सेवा और साधना करते हैं। उनका यह भाव राधा-कृष्ण के प्रति उनकी अनन्य प्रेममय निष्ठा को दर्शाता है।

उनके सत्संगों में ब्रज-रस की गूंज रहती है —
भक्तिमय पद, माधुर्य से भरे कीर्तन और कृष्ण लीलाओं का वर्णन श्रोताओं को भक्ति और भाव की दुनिया में ले जाता है।

सत्संग में गूंजी भक्ति और एकता की धारा

सत्संग के दौरान रंगीली सखी महाराज ने प्रेमानंद महाराज से श्रीजी (राधा रानी) के चरणों में एकांतिक निष्ठा रखने का आग्रह किया। इस पर प्रेमानंद महाराज ने भावपूर्ण शब्दों में कहा –

“अब तो हमारे सारे रास्ते बंद हैं, एक ही रास्ता खुला है — श्रीजी के पास ही जा सकते हैं, और कहीं नहीं।”

दोनों संतों ने संप्रदायवाद पर चिंता जताई और संतों में आपसी भेदभाव समाप्त करने का संदेश दिया।
रंगीली सखी महाराज ने कहा –

“चारों संप्रदायों के संत एक ही श्रीजी की आराधना करते हैं। भेदभाव नहीं, एकता ही सच्ची भक्ति है।”

इस पर प्रेमानंद महाराज ने समाधान के रूप में कहा –

“आप सुधरो, हम सुधरेंगे… पहले हम सुधरें, सब में भागवत भावना करें।”

“प्रेमानंद महाराज प्रिया जी की सहचरी हैं”

रंगीली सखी महाराज ने प्रेमानंद महाराज की भक्ति की प्रशंसा करते हुए कहा –

“प्रेमानंद महाराज प्रिया जी की सहचरी हैं, जो सब जीवों का उद्धार कर रही हैं।”

उन्होंने विनम्रता से स्वयं को बूंद और प्रेमानंद महाराज को सागर बताया।

यह दिव्य संवाद न केवल वृंदावन की आध्यात्मिक गरिमा को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब संत एकत्र होते हैं तो समाज में प्रेम, भक्ति और समरसता का प्रकाश फैलता है।

वृंदावन की धरती पर यह मिलन भक्तिभाव, नम्रता और एकता की अनोखी मिसाल बन गया है।

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