Saturday, November 15

कट्टा चला… और खुद घायल हो गए तेजस्वी यादव! अपने ‘खिदमतगारों’ ने ही लगा दी उनकी राजनीति को चोट

पटना, बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। अब तक जिस राजद को जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, उसी पार्टी के प्रमुख नेता तेजस्वी यादव को उनके समर्थकों ने ही चुनावी ‘सुनामी’ में डुबो दिया। इस बार बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव के सामने उनकी पार्टी के ही ऐसे ‘खिदमतगार’ चुनौती बनकर उभरे, जिन्होंने उनके प्रयासों को पलीता लगा दिया।

समर्थकों के विवादास्पद प्रचार का असर:
बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान राजद के कुछ समर्थकों ने ऐसे विवादास्पद गाने और वीडियो बनाए, जिनसे चुनावी माहौल में नकारात्मक प्रभाव पड़ा। समस्तीपुर के मोहिउद्दीननगर में एक बच्चे ने मंच से गाना गाया, “गे छौंरी गे, लठिया लेके घुमछी… त कहछी गंवार गे। बने देही सीएम तेजस्वी भइया के, तब कट्टा लेके घुमवई त कहिहें।” इस गाने में कट्टा चलाने की धमकी दी गई, जिससे न केवल राजनीति में अशांति फैल गई, बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मामले पर संज्ञान लिया और प्रशासन को नोटिस जारी किया।

इन विवादास्पद गानों और नफरत फैलाने वाली टिप्पणियों ने मतदाताओं के मन में डर पैदा कर दिया। चुनावी माहौल में यह गाने, जिनमें कट्टे और गालियों की बातें थीं, राजद के पक्ष में माहौल बनाने के बजाय इसके खिलाफ ही काम करने लगे। चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि ऐसे प्रचार ने तेजस्वी के चुनावी वादों को कमजोर किया और उन्हें नुकसान पहुँचाया।

गालियाँ और कट्टे की राजनीति:
इसके अतिरिक्त, दुलारचंद यादव की शवयात्रा में खुलेआम अनंत सिंह और सवर्णों को गालियाँ दी गईं, जिसके चलते प्रशासन भी मौन रहा। इस तरह के वाक्यांतर ने मतदाताओं को नाराज कर दिया और इस गुस्से का इजहार वोटों के रूप में हुआ। परिणामस्वरूप, राजद को उम्मीद के मुताबिक सीटों का आंकड़ा नहीं मिला और पार्टी केवल 25 सीटों पर सिमट कर रह गई।

तेजस्वी के वादों का उल्टा असर:
वोटरों में तेजस्वी यादव के वादों—हर घर एक सरकारी नौकरी, जीविका दीदियों के लिए 30 हजार रुपए महीना—का असर शुरू में दिखा था, लेकिन उनकी पार्टी के समर्थकों ने इन वादों को प्रचार के जरिए इस कदर गडबडाया कि लोगों में इन पर विश्वास कमजोर हो गया। विशेषकर, कट्टा और गाली वाले गाने और वीडियो ने चुनावी नतीजों को पलट दिया।

बिहार में ‘जंगलराज’ का डर:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “कट्टा वाले भाषण” ने भी इसे और बढ़ावा दिया। उन्होंने इस तरह के प्रचार के जरिए लोगों के मन में यह भय पैदा किया कि यदि राजद सत्ता में आई तो बिहार में फिर से ‘जंगलराज’ लौट आएगा। एनडीए, जिसमें बीजेपी, जदयू, लोजपा रामविलास, HAM और RLM शामिल थे, इस नैरेटिव को प्रभावी ढंग से लोगों के बीच फैलाने में सफल रहे, जिसका नतीजा एनडीए के अभूतपूर्व बहुमत के रूप में सामने आया।

तेजस्वी के सामने असली चुनौती:
इस बार तेजस्वी यादव के सामने न तो नीतीश कुमार थे और न ही नरेंद्र मोदी की चुनौती। उनके खिलाफ असली चुनौती उनके खुद के पार्टी के समर्थकों ने खड़ी कर दी। तेजस्वी ने चुनावी वादों के दम पर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उनके समर्थकों ने प्रचार में इतनी गलतियां कीं कि उन्हें इसका खामियाजा उठाना पड़ा। 2020 के चुनाव में तेजस्वी ने स्पष्ट और मजबूत वादे किए थे, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी पार्टी के ऐसे समर्थकों के खिलाफ कोई सख्त संदेश नहीं दिया, जो उनकी छवि को नुकसान पहुँचा रहे थे।

नतीजा:
राजद और तेजस्वी यादव को चुनावी मैदान में इस बार जीत तो नहीं मिली, लेकिन यह जरूर साबित हो गया कि राजनीति में ‘खिदमतगारों’ का व्यवहार कभी-कभी मुख्य नेता से कहीं ज्यादा अहम हो सकता है।

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