
पटना, बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन को मिली करारी शिकस्त का मुख्य कारण सिर्फ गठबंधन के कमजोर साथी दल नहीं थे, बल्कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और गठबंधन के प्रमुख चेहरा तेजस्वी यादव की पांच बड़ी राजनीतिक गलतियां भी थीं। इन गलत फैसलों ने न केवल महागठबंधन की रणनीति को कमजोर किया, बल्कि कई सामाजिक वर्गों को भी इससे दूर कर दिया, जिसका सीधा असर चुनावी परिणामों पर पड़ा। आइए जानते हैं तेजस्वी यादव की वो पांच बड़ी गलतियां, जिन्होंने महागठबंधन की चुनावी लुटिया डुबो दी:
1. उपमुख्यमंत्री पद की गलत घोषणा
महागठबंधन की राजनीति में सबसे बड़ी गलती तेजस्वी यादव ने उपमुख्यमंत्री पद के लिए वीआईपी के मुकेश सहनी का नाम घोषित कर दी। यह फैसला न केवल अपरिपक्वता का उदाहरण था, बल्कि इससे राजद को दो बड़े वर्गों—दलितों (19.65% जनसंख्या) और मुस्लिमों (17.7% जनसंख्या)—का समर्थन खोना पड़ा। तेजस्वी ने इस फैसले को भविष्य के लिए टालने की बजाय सीधे तौर पर इन वर्गों को नाराज किया, जिससे महागठबंधन को भारी नुकसान हुआ।
2. एआईएमआईएम को नकारना
तेजस्वी यादव की दूसरी बड़ी गलती एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) को गठबंधन में शामिल न करना और ओवैसी पर विवादित बयान देना था। तेजस्वी ने ओवैसी को ‘आतंकी’ तक करार दिया, जबकि भारत के मुस्लिम समुदाय के लिए यह शब्द बेहद संवेदनशील है। इसके अलावा, बिहार में एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल इस्लाम को बार-बार अपने गठबंधन से बाहर करने का भी राजद को भारी नुकसान हुआ। इससे मुस्लिम वोटों के विभाजन का खतरा बढ़ा और महागठबंधन की स्थिति कमजोर हुई।
3. दोस्ताना संघर्ष का संदेश
महागठबंधन में ‘दोस्ताना संघर्ष’ यानी कई सीटों पर आपसी समझौते के तहत मुकाबला, महागठबंधन के लिए आत्मघाती साबित हुआ। यह संदेश समाज में गलत गया कि महागठबंधन अपने घर को ठीक से नहीं चला सकता, तो वह राज्य और देश की राजनीति कैसे चला पाएगा? इसने जनता के बीच गठबंधन की कमजोरियों को उजागर किया और विरोधी दलों को अवसर प्रदान किया।
4. वोट चोरी बनाम घुसपैठिया मुद्दा
तेजस्वी यादव ने कांग्रेस के ‘वोट चोरी’ मुद्दे पर समर्थन किया, जबकि बीजेपी ने ‘घुसपैठिया’ मुद्दा उठाकर एक बड़े हिंदू वर्ग को अपनी ओर खींच लिया। यह मुद्दा बिहार के चुनावी माहौल में बहुत ही प्रभावी साबित हुआ और इसने एनडीए को हिंदू मतदाताओं का समर्थन दिलाया। इसके परिणामस्वरूप, एनडीए को अप्रत्याशित रूप से 200 सीटों के पार जीत मिली, जबकि महागठबंधन काफी कम सीटों पर सिमट गया।
5. कांग्रेस और वीआईपी को तरजीह
तेजस्वी यादव का कांग्रेस और वीआईपी पर अधिक भरोसा करने का भी बड़ा खामियाजा महागठबंधन को उठाना पड़ा। कांग्रेस का गुटबाजी और आंतरिक कलह ने न केवल पार्टी को बल्कि महागठबंधन को भी वोटों में कोई इज़ाफा नहीं किया। वहीं, वीआईपी की अप्रत्याशित भूमिका और कमजोर स्थिति ने भी महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। इन दलों के कमजोर प्रदर्शन ने राजद के वर्चस्व को कमजोर किया, और महागठबंधन को बुरी हार का सामना करना पड़ा।
नतीजा:
इन पांच बड़ी गलतियों ने महागठबंधन की रणनीति को पूरी तरह से कमजोर कर दिया। तेजस्वी यादव ने भले ही बिहार के विकास के वादे किए थे, लेकिन इन गलतियों ने उनके चुनावी अभियान को पटरी से उतार दिया। महागठबंधन की इस हार में अकेले गठबंधन के कमजोर साथी नहीं, बल्कि तेजस्वी यादव की राजनीतिक अपरिपक्वता और गलत फैसले भी जिम्मेदार रहे।
कुल मिलाकर, बिहार चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव और महागठबंधन की रणनीतियों में कई कमियां उजागर हुईं, जिनका परिणाम हार के रूप में सामने आया।