
भोपाल/पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राजनीतिक आत्मविश्वास और असफल दावों की कहानी फिर से साबित कर दी। विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने महागठबंधन की जीत का दावा 4 दिन पहले ही कर दिया था और कहा था कि वे 18 नवंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। उन्होंने एनडीए पर चुनाव आयोग और केंद्रीय पुलिस बल की मदद लेने का आरोप लगाया।
लेकिन जनता का जनादेश और वास्तविक मतगणना ने एनडीए को सबसे बड़ा दल बनाकर विपक्ष की उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया। तेजस्वी यादव के पूर्वानुमान सोशल मीडिया पर वायरल मीम का हिस्सा बन गए।
इतिहास दोहराया गया
यह पहला मौका नहीं है जब नेता अति-आत्मविश्वास में फंस गए। 2023 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम घोषित कर दिया था। छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ ने मतगणना से पहले शपथ ग्रहण समारोह में आने के लिए आमंत्रित किया था। तब भी भारी उम्मीदों और दावों का महल ढह गया।
बड़े दावे भारी पड़ते हैं
नेता अक्सर रैलियों और मीडिया की चमक को जनता के समर्थन का पैमाना समझ लेते हैं। लेकिन जैसे ही वास्तविक नतीजे सामने आते हैं, वही दावे भारी और शर्मनाक साबित होते हैं। तेजस्वी यादव, नकुलनाथ और अन्य नेताओं के मामले यह स्पष्ट करते हैं कि चुनाव में जीत-हार का खेल जितना अनिश्चित है, उतना ही रोमांचक भी।
विशेषज्ञों का कहना है कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनने के लिए अभी 5 साल और इंतजार करना पड़ेगा। अति-आत्मविश्वास में दांव लगाने वाले नेताओं को नतीजों की कठोर सच्चाई अक्सर चुप कर देती है।
निष्कर्ष: बिहार चुनाव ने एक बार फिर यह सिखाया कि नेता की हिम्मत और जनता का निर्णय हमेशा समानांतर नहीं चलते। आत्मविश्वास जरूरी है, लेकिन अति-आत्मविश्वास भारी पड़ सकता है।