Friday, November 14

साथ चाहिए या नहीं… बिहार नतीजों के बाद कांग्रेस की भूमिका पर उठ रहे सवाल

नई दिल्ली/पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने महागठबंधन के सहयोगी दलों की रणनीति और भविष्य की संभावनाओं पर कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। एनडीए ने ऐतिहासिक जीत हासिल की है और 200 सीटों के पार जा रही है, जबकि महागठबंधन का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा, जिसकी सीटें 5 से भी कम दिख रही हैं।

कांग्रेस के साथ गठबंधन का फायदा हुआ या नुकसान?
विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में लगातार दूसरी बार कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन ने महागठबंधन के दलों को सोचना मजबूर कर दिया है कि क्या कांग्रेस के साथ गठबंधन करना वास्तव में लाभकारी है। अगर ये दल अलग-अलग लड़ते, तो नतीजे चाहे जो भी होते, कम से कम उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल तो बना रहता।

यूपी और बंगाल में असर
बिहार नतीजों का असर पड़ोसी राज्यों पर भी दिखाई देगा। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस का गठबंधन है और 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यह नतीजे सपा के लिए सोचने का कारण होंगे। यूपी में कांग्रेस का अलग लड़ना या गठबंधन, दोनों ही विकल्पों में सपा को राजनीतिक संतुलन बनाए रखना होगा।

वहीं, पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। ममता बनर्जी और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर पिछले वर्षों में भ्रम की स्थिति बनी हुई थी। बिहार नतीजों के बाद यह कन्फ्यूजन कम हो सकता है, और ममता बनर्जी को रणनीति तय करने में आसानी हो सकती है।

निष्कर्ष: बिहार चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महागठबंधन में शामिल दलों के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन अब चुनौतीपूर्ण विकल्प बन गया है। आगामी चुनावों में सहयोगी दलों की रणनीति और गठबंधन की दिशा तय करने में बिहार के नतीजे अहम भूमिका निभाएंगे।

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