
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में मरीज अक्सर कई तरह के उपाय आज़माते हैं। हल्दी को स्वास्थ्यवर्धक और कैंसर रोधी माना जाता है, लेकिन इसका गलत तरीके से सेवन जानलेवा साबित हो सकता है। ऐसा ही एक मामला ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. अक्षय केवलानी ने साझा किया।
मरीज की स्थिति
डॉ. केवलानी के अनुसार, एक बुजुर्ग महिला को रीनल सेल कार्सिनोमा (किडनी का कैंसर) था, साथ में लंग मेटास्टेटिस भी था। उनका इलाज कीमोथेरेपी की तीसरी साइकिल के तहत होना था। लेकिन महिला कीमोथेरेपी के साथ-साथ हल्दी के कैप्सूल भी ले रही थी, जिसका असर शरीर पर भयंकर पड़ा।
महिला के शरीर का रंग पीला पड़ गया और उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी। डॉक्टर को शुरू में लगा कि शायद कैंसर लिवर तक पहुँच गया है, जिससे पीलिया हो गया।
जांच में सामने आया सच
जाँच में पाया गया कि महिला की आँखों का स्क्लेरा (सफेद हिस्सा) पीला नहीं था, जो असली पीलिया में होता है। अटेंडेंट से पूछताछ पर पता चला कि महिला हल्दी के कैप्सूल ले रही थी, जिसे एक लोकल फिजीशियन ने दिया था।
डॉ. केवलानी ने बताया कि हल्दी में मौजूद करक्यूमिन शरीर में जमकर त्वचा को पीला कर देता है। यह सक्रिय घटक त्वचा और टिश्यू में जमा होकर पीलापन पैदा करता है, जिससे सभी को लगा कि पीलिया है।
हल्दी और करक्यूमिन के बारे में जानकारी
हल्दी में मौजूद करक्यूमिन को लैब ट्रायल में कैंसर सेल्स को मारने वाला पाया गया।
मगर यह असर इंसान के शरीर में उतना प्रभावी नहीं होता।
हल्दी का अवशोषण पेट में ही अधिक होता है, खून और ट्यूमर तक इसका कम ही असर पहुँच पाता है।
डॉक्टर की चेतावनी
डॉ. केवलानी ने साफ किया कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी घरेलू उपाय या सप्लीमेंट का सेवन करना खतरनाक हो सकता है। प्रीक्लीनिकल ट्रायल के नतीजे इंसान पर सीधे लागू नहीं होते।
निष्कर्ष:
हल्दी स्वास्थ्यवर्धक है, लेकिन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में इसका सेवन डॉक्टर की निगरानी के बिना जानलेवा हो सकता है। मरीजों को हमेशा विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही किसी सप्लीमेंट या घरेलू उपाय का उपयोग करना चाहिए।
डिस्क्लेमर:
इस लेख में दी गई जानकारी इंटरनेट और इंस्टाग्राम रील पर आधारित है। नवभारतटाइम्स इसकी सटीकता या असर की जिम्मेदारी नहीं लेता।