
टीनएज के दौरान बच्चों का मनमानी करना और पेरेंट्स से असम्मानपूर्ण व्यवहार करना आम बात है। कई माता-पिता इस स्थिति में खुद को दोषी ठहराने या चुप रहने लगते हैं। लेकिन पेरेंटिंग कोच पुष्पा शर्मा के अनुसार, चुप रहना समाधान नहीं है। इसके बजाय तीन असरदार कदम अपनाकर बच्चे के व्यवहार को सुधारा जा सकता है।
- खुद को इमोशनल रूप से सुरक्षित रखें
पुष्पा शर्मा बताती हैं कि 13 से 19 साल के बच्चे जब डिसरिस्पेक्ट करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि बच्चा बिगड़ा हुआ है। रोज की बेइज्जती से माता-पिता थक जाते हैं, लेकिन इसे सामान्य मान लेना सही नहीं।
सबसे पहले खुद को शांत रखना जरूरी है। जब पेरेंट्स अपने इमोशंस को नियंत्रित रखते हैं, तभी पॉवर उनके हाथ में रहती है और सही पेरेंटिंग संभव हो पाती है।
- गंदी टोन में बात सुनने की कोशिश न करें
कोच का कहना है कि जब बच्चा असम्मानजनक टोन में बात करे, तो उसी समय खुद को कमरे से बाहर निकाल दें। उदाहरण के लिए कहें:
“अगर तुम इस टोन में बात करोगे, तो मैं यह कमरा छोड़ दूँगी। जब तुम सम्मान से बात करोगे, तभी मैं तुम्हारी बात सुनूंगी।”
इस प्रक्रिया में न कोई लेक्चर दें, न कोई ताना दें। इससे बच्चे को डिसरिस्पेक्ट करने का अटेंशन नहीं मिलता और धीरे-धीरे उसका व्यवहार बदलने लगता है।
- प्रोफेशनल हेल्प लेने में संकोच न करें
यदि ऊपर बताए गए कदमों के बाद भी व्यवहार में सुधार न दिखे, तो यह सामान्य टीनएज बिहेवियर नहीं है। ऐसी स्थिति में स्ट्रक्चर्ड इंटरवेंशन की जरूरत होती है।
पेरेंट्स को तुरंत किसी एक्सपर्ट या काउंसलर की मदद लेनी चाहिए ताकि बच्चे के व्यवहार पर प्रभावी नियंत्रण रखा जा सके।
निष्कर्ष:
बच्चे का असम्मानजनक व्यवहार आम है, लेकिन इसे अनदेखा करना या चुप रहना समाधान नहीं है। सही समय पर उठाए गए कदम और एक्सपर्ट की मदद बच्चे के व्यवहार में बदलाव ला सकती है।
डिस्क्लेमर:
लेख में दी गई जानकारी सामान्य जानकारी के लिए है। नवभारतटाइम्स इसकी सत्यता या असर की जिम्मेदारी नहीं लेता।