Monday, December 29

कौन थे महाराजा अहिबरन? जिनके नाम पर बुलंदशहर का नाम ‘बरन नगर’ करने की उठी मांग

 

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उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले का नाम बदलकर ‘बरन नगर’ किए जाने की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। यह चर्चा वाराणसी में आयोजित महाराजा अहिबरन जयंती समारोह के दौरान योगी सरकार के राज्य मंत्री रविंद्र जायसवाल की घोषणा के बाद और भी गर्मा गई है। मंत्री ने कहा कि बुलंदशहर का नाम शीघ्र ही बरन नगर किया जाएगा। इसके बाद से ही महाराजा अहिबरन और उनके ऐतिहासिक योगदान को लेकर बहस और विमर्श तेज हो गया है।

 

 

बुलंदशहर के संस्थापक माने जाते हैं महाराजा अहिबरन

 

महाराजा अहिबरन को आदिपुरुष बरन नगर (आधुनिक बुलंदशहर) का संस्थापक माना जाता है। बरनवाल वैश्य समाज की उत्पत्ति उन्हीं से मानी जाती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल तक इस समाज की बड़ी आबादी निवास करती है।

बुलंदशहर में आज भी महाराजा अहिबरन का किला उनके गौरवशाली शासनकाल की याद दिलाता है।

 

 

इतिहास में अहिबरन का स्थान

 

इतिहास के अनुसार, अयोध्या के सूर्यवंशी राजा मान्धाता के पुत्र गुनाधि के वंश में महाराजा अहिबरन का जन्म हुआ। उनके समकालीन राजा महाराजा अग्रसेन थे, जिन्होंने अग्रवाल और अग्रहरि वैश्य वंश की नींव रखी।

महाराजा अहिबरन ने व्यापार को संरक्षण दिया और वैश्य समाज के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मान्यता है कि देवी लक्ष्मी ने उन्हें और उनके वंशजों को समृद्धि का वरदान दिया था।

 

 

1192 में हुआ आक्रमण

 

वर्ष 1192 ईस्वी में मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने बरन नगर पर आक्रमण कर महाराजा अहिबरन के किले पर कब्जा कर लिया। इसके बावजूद अहिबरन साम्राज्य के अवशेष आज भी ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मौजूद हैं।

हाल के वर्षों में वीरपुर, भटोरा और गालिबपुर क्षेत्रों में हुई खुदाई के दौरान इस साम्राज्य से जुड़े अवशेष मिले हैं, जिन्हें लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।

 

 

ऐतिहासिक ग्रंथों में भी उल्लेख

 

एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के जर्नल में भी अहिबरन साम्राज्य का उल्लेख मिलता है। इसमें ताम्रपत्रों और चांदी की मुद्राओं के प्रचलन का वर्णन है।

हालांकि कुछ इतिहासकारों ने उनके अस्तित्व पर संदेह जताया था, लेकिन बाद में एडविन एटकिंसन, ब्रिटिश गजेटियरों और जनगणना अभिलेखों में महाराजा अहिबरन के ऐतिहासिक प्रमाण सामने आए। आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार अहिबरन और उनके वंशज पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के बड़े भूभाग पर शासन करते थे।

 

 

वरणवती नदी और सांस्कृतिक विरासत

 

बुलंदशहर जिले से होकर बहने वाली वरणवती नदी का नाम महाराजा अहिबरन ने अपनी पत्नी के नाम पर रखा था। पहले यह नदी इक्षुमती कहलाती थी, जिसका उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है।

भटोरा, वीरपुर और गालिबपुर में मिले खंडहर, प्राचीन सिक्के, मूर्तियां और शिलालेख बरन क्षेत्र की प्राचीनता के साक्ष्य हैं।

 

 

26 दिसंबर को मनाई जाती है जयंती

 

हर वर्ष 26 दिसंबर को महाराजा अहिबरन की जयंती बरनवाल समाज द्वारा धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर शोभायात्राएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक मिलन समारोह आयोजित किए जाते हैं।

बरनवाल समाज आज भी महाराजा अहिबरन को गौरव, पहचान और सामाजिक एकता का प्रतीक मानता है।

 

 

नाम बदलने की चर्चा के बीच बढ़ी दिलचस्पी

 

योगी सरकार के मंत्री की घोषणा के बाद बुलंदशहर का नाम बदलने की चर्चा ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। एक ओर जहां समाज के लोग इसे ऐतिहासिक सम्मान मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासनिक प्रक्रिया को लेकर नजरें सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं।

 

 

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