
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के बीच मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) पर चुनाव आयोग की चुप्पी ने सियासी हलचल बढ़ा दी है। योजना के तहत महिलाओं को 10 हजार रुपये देने की कार्रवाई जारी रही, जबकि विपक्ष ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया।
विशेष बात यह है कि चुनाव आयोग ने तमिलनाडु में इसी तरह की परिस्थितियों में दो कल्याणकारी योजनाओं पर रोक लगा दी थी।
तमिलनाडु में रोक की गई थीं योजनाएँ
- 2004 – AIADMK की नकद सहायता योजना: मार्च 2003 में जयललिता सरकार ने छोटे किसानों को साल में दो बार 500 से 625 रुपये की नकद सहायता देने की घोषणा की। लेकिन मार्च 2004 में आयोग ने आदेश दिया कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक पैसा वितरित न किया जाए।
- 2006 – DMK की फ्री कलर टीवी योजना: करुणानिधि सरकार ने फ्री टीवी वितरण की घोषणा की थी। मार्च 2011 में चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही आयोग ने वितरण रोकने के निर्देश दिए। हालांकि तब तक 1.62 करोड़ टीवी सेट वितरित हो चुके थे।
बिहार में जारी रही 10 हजार रुपये वाली योजना
बिहार में चुनाव की घोषणा से 10 दिन पहले, 26 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह योजना शुरू की थी, जिसमें 75 लाख महिलाओं को लाभ देने का प्रावधान था।
आरजेडी और कांग्रेस ने आरोप लगाया कि चुनाव के दौरान योजना जारी रहना आचार संहिता का उल्लंघन है, लेकिन आयोग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
आयोग की नीति पर उठ रहे सवाल
राजनीतिक दलों का कहना है कि अगर तमिलनाडु में योजनाओं पर रोक लग सकती थी, तो बिहार में भी वही मानक लागू होना चाहिए थे। आयोग की इस चुप्पी ने उसकी कार्यप्रणाली और नीति में समानता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।