
राजस्थान के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। मध्यप्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व से एक बाघिन को एयरलिफ्ट कर राजस्थान के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व लाया गया है। यह देश का पहला इंटर-स्टेट टाइगर ट्रांसलोकेशन है, जिसे भारतीय वायुसेना की मदद से अंजाम दिया गया। इस सफल अभियान को बाघ संरक्षण और जैव विविधता के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
करीब 25 दिनों की तैयारियों और सतत प्रयासों के बाद यह अभियान रविवार देर रात से सोमवार सुबह तक पूरा हुआ। रविवार रात करीब 10:15 बजे बाघिन को भारतीय वायुसेना के एमआई-17 हेलीकॉप्टर से जयपुर एयरपोर्ट लाया गया। इसके बाद सोमवार सुबह 6:35 बजे कड़ी सुरक्षा और विशेषज्ञों की निगरानी में सड़क मार्ग से उसे रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व पहुंचाया गया। जयपुर से उनियारा होते हुए बूंदी तक पूरे रास्ते प्रशासन और वन विभाग पूरी तरह अलर्ट रहा।
पहली बार एयरलिफ्ट से हुआ अंतरराज्यीय स्थानांतरण
यह पहली बार है जब राजस्थान में किसी बाघिन को इंटर-स्टेट ट्रांसलोकेशन के तहत एयरलिफ्ट कर लाया गया है। इस ऐतिहासिक मिशन के लिए भारतीय वायुसेना का सहयोग लिया गया, जबकि राज्य और केंद्र के वन्यजीव विशेषज्ञों की टीम हर कदम पर मौजूद रही। रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में पहले से सभी व्यवस्थाएं पूरी कर ली गई थीं, ताकि बाघिन को सुरक्षित और अनुकूल वातावरण मिल सके।
पेंच में ट्रेंकुलाइजेशन, हेल्थ चेकअप और रेडियो कॉलर
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के कोटा कार्यालय से जारी जानकारी के अनुसार, रविवार दोपहर पेंच टाइगर रिजर्व में विशेषज्ञों की टीम ने बाघिन को ट्रेंकुलाइज किया। पशु चिकित्सकों ने उसका संपूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण किया और निगरानी के लिए गले में रेडियो कॉलर लगाया गया। बताया गया कि बाघिन की उम्र करीब ढाई साल है। पहले लगाया गया रेडियो कॉलर निकल जाने के कारण उसे दोबारा ट्रेंकुलाइज कर कॉलर पहनाया गया।
प्रजनन और पारिस्थितिकी संतुलन को मिलेगी मजबूती
मध्यप्रदेश के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक शुभ रंजन सेन ने बताया कि इस बाघिन की पहचान पहले ही कर ली गई थी और यह ट्रांसलोकेशन पूरी तरह वैज्ञानिक अध्ययन और योजना के तहत किया गया है। अधिकारियों का मानना है कि इससे रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ेगी, प्रजनन को बल मिलेगा और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन मजबूत होगा।
अब यह बाघिन रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में अपने नए प्राकृतिक आवास में जीवन की नई शुरुआत करेगी। यह पहल न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में वन्यजीव संरक्षण के लिए एक मिसाल बनेगी और भविष्य में अन्य राज्यों के लिए भी मार्गदर्शक साबित होगी।