
नई दिल्ली: भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले ऑल-टाइम लो पर पहुंच गया है। मंगलवार को यह पहली बार 91.08 प्रति डॉलर तक गिरा। हालांकि शुक्रवार को कुछ सुधार देखा गया और रुपये की कीमत 89.27 प्रति डॉलर पर बंद हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये में गिरावट का रुख अभी भी जारी रहने के आसार हैं।
इतिहास में रुपया:
100 साल पहले भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले काफी मजबूत था। उस समय भारत अंग्रेजों के शासन में था और रुपये की वैल्यू ब्रिटिश पाउंड से जुड़ी थी।
रुपये के गिरने के कारण:
- बढ़ता व्यापार घाटा: भारत जितना सामान विदेश से खरीदता है, उससे कम बेचता है। अक्टूबर में व्यापार घाटा 41.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
- विदेशी निवेश में गिरावट: विदेशी निवेशकों ने इस साल 17 अरब डॉलर से अधिक पैसा भारत से बाहर निकाल लिया।
- भारत-अमेरिका ट्रेड डील की अनिश्चितता।
- वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितताएं।
सरकार और RBI का प्रयास:
- विदेशी मुद्रा कारोबारियों का कहना है कि घरेलू शेयर बाजार में सकारात्मक रुझान और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी ने रुपये को थोड़ा समर्थन दिया।
- आरबीआई के हस्तक्षेप के कारण रुपये में मजबूती देखी गई।
कौन होगा प्रभावित?
- तेल कंपनियां: भारत अपनी जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल विदेश से आयात करता है। रुपया कमजोर होने से पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर दबाव पड़ेगा।
- खाद उद्योग और सब्सिडी: खाद्य आयात की लागत बढ़ने से सरकार की सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा।
- विदेश में पढ़ाई: डॉलर में फीस वही रहेगी, लेकिन रुपये कमजोर होने से अधिक रुपये खर्च होंगे।
- एयरलाइन और इलेक्ट्रिक वाहन: ईंधन और विदेश से आने वाले पुर्जों की लागत बढ़ेगी, जिससे हवाई यात्रा और महंगी कारें ज्यादा महंगी हो जाएंगी।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और व्हाइट गुड्स: स्मार्टफोन, टीवी, एसी जैसे उत्पादों में आयातित पुर्जों की कीमत बढ़ेगी, जिससे उपभोक्ताओं पर असर पड़ेगा।
- सोना और चांदी: भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर सोना और चांदी विदेश से आयात करता है। रुपये कमजोर होने से गहनों की कीमतें और बढ़ सकती हैं।
विशेषज्ञों का निष्कर्ष:
रुपया कमजोर होने से देश में महंगाई बढ़ने और उद्योगों पर दबाव बढ़ने की संभावना है। वहीं, शेयर बाजार और विदेशी निवेशक रुपये की स्थिति पर लगातार नजर रख रहे हैं।