
कभी खुद को “शिक्षा सुधारक” कहने वाले बिजेंद्र सिंह हुड्डा आज उत्तर प्रदेश के सबसे चर्चित आर्थिक अपराधियों में गिने जा रहे हैं। हापुड़ (पिलखुआ) से लेकर मेरठ, गाजियाबाद और दिल्ली तक उनका नाम ठगी, फर्जीवाड़े और अरबों की हेराफेरी के मामलों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अब हुड्डा के 15 हजार करोड़ रुपये के कथित “काले साम्राज्य” की परतें खोलने में जुटा है।
🎓 10वीं पास “शिक्षा सुधारक” से अरबपति तक का सफर
हुड्डा का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। 10वीं पास यह शख्स चीन में लैपटॉप और टैबलेट के कारोबार से करोड़ों कमाकर 2010 में भारत लौटा। देश लौटने के बाद उसने इलेक्ट्रॉनिक व्यापार के साथ-साथ मीडिया, शिक्षा और राजनीति में कदम रखा।
धीरे-धीरे उसने न्यूज चैनलों में हिस्सेदारी ली, अफसरों और पत्रकारों से संबंध बनाए और फिर शिक्षा के नाम पर साम्राज्य खड़ा किया। लेकिन इसकी नींव ईमानदारी पर नहीं, बल्कि धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े पर रखी गई थी।
🏫 मोनाड यूनिवर्सिटी और “बाइक बोट” घोटाले की कड़ी
मोनाड यूनिवर्सिटी, जो एक समय शिक्षा के आदर्श केंद्र के रूप में जानी जाती थी, आज फर्जी डिग्रियों और वित्तीय गड़बड़ियों के कारण जांच के घेरे में है।
दूसरी ओर, बाइक बोट घोटाला – जिसमें करीब 15 हजार करोड़ रुपये की ठगी का आरोप है – ने हुड्डा की साख पूरी तरह मिटा दी। जब यह घोटाला उजागर हुआ, तो हुड्डा ने अपने न्यूज चैनल और कारोबार से किनारा कर लिया और फरार हो गया।
⚖️ सौ से अधिक मुकदमे, 230 करोड़ की देनदारी
गाजियाबाद, दिल्ली और गौतमबुद्धनगर की अदालतों में हुड्डा पर धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक षड्यंत्र और साक्ष्य मिटाने जैसे 100 से अधिक केस दर्ज हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में दाखिल शपथपत्र में खुद हुड्डा ने स्वीकार किया कि उसकी कुल संपत्ति 28 करोड़ रुपये है, जबकि देनदारी 230 करोड़ रुपये से अधिक है। हैरानी की बात यह कि उसने अपनी सालाना आय मात्र 15 लाख रुपये बताई।
अब बड़ा सवाल यह है कि इतनी अकूत संपत्ति आखिर आई कहाँ से?
🔍 ईडी की रडार पर पूरा आर्थिक नेटवर्क
सूत्रों के मुताबिक, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अब यह जांच कर रहा है कि बाइक बोट से जुटाए गए 15 हजार करोड़ रुपये को कहां-कहां निवेश किया गया।
साथ ही यह भी जांच जारी है कि मोनाड यूनिवर्सिटी का साम्राज्य कैसे खड़ा हुआ, किन राजनीतिक आकाओं और अफसरों ने इसमें भूमिका निभाई, और देशभर में फैले हुड्डा के फर्जी ट्रांजेक्शन नेटवर्क के धागे कहाँ तक पहुँचते हैं।
🚨 जनता की शिक्षा से खिलवाड़
हुड्डा ने जिस “शिक्षा सुधार” के नाम पर साम्राज्य खड़ा किया, उसी शिक्षा को ठगी का ज़रिया बना दिया। मोनाड यूनिवर्सिटी से जारी हुईं सैकड़ों फर्जी डिग्रियाँ आज भी जांच के दायरे में हैं।
एक समय खुद को “एजुकेशन विजनरी” बताने वाला यह व्यक्ति आज देश की सबसे बड़ी आर्थिक जालसाजी का प्रतीक बन चुका है।
निष्कर्ष:
बिजेंद्र सिंह हुड्डा की कहानी उस कड़वे सच की याद दिलाती है कि जब शिक्षा और ईमानदारी पर झूठ का पर्दा डाल दिया जाता है, तो ज्ञान के मंदिर भी घोटालों के अड्डे बन जाते हैं। अब देखना यह है कि ईडी की जांच से हुड्डा का यह साम्राज्य कब तक बच पाता है।