
चाईबासा। आंध्रप्रदेश में मुठभेड़ में माओवादी नेता माडवी हिडमा की मौत के बाद झारखंड में नक्सलियों का नेटवर्क कमजोर हो गया है। हिडमा के निधन के बाद माओवादी ‘हमें बख्श दो’ जैसे पत्र भेजकर राज्यों की सरकारों से आत्मसमर्पण की अपील कर रहे हैं। इस खबर से झारखंड के नक्सली भयभीत होकर अपने-अपने ठिकानों में दुबक गए हैं।
सारंडा तक सिमटी गतिविधियाँ
झारखंड में अब एक्टिव नक्सली मुख्य रूप से पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा जंगल तक सिमट गए हैं। हिडमा जब जिंदा था, तब उसने सारंडा में पैर जमाने की कोशिश की थी, जिससे झारखंड और ओडिशा में नक्सली घटनाओं में तेजी आने की आशंका थी। हालांकि भाषा और तालमेल की समस्या के कारण हिडमा की पकड़ सारंडा में मजबूत नहीं हो पाई।
संगठन की कमजोर स्थिति
हिडमा के मारे जाने के बाद नक्सलियों के हौसले टूट गए हैं। पहले लातेहार, गिरिडीह और गुमला के नक्सली सारंडा में शरण लेकर संगठन को मजबूत करते थे। हिडमा के आंध्रप्रदेश में मारे जाने के बाद झारखंड और ओडिशा पुलिस को बड़ी राहत मिली है।
पुलिस और अर्धसैनिक बल सक्रिय
झारखंड पुलिस, अर्धसैनिक बलों के साथ सारंडा में सक्रिय नक्सलियों की कमर तोड़ने में जुटी है। सारंडा जंगल, जो लगभग 820 वर्ग किमी में फैला है, नक्सलियों को आश्रय और संगठन विस्तार का प्रमुख केंद्र रहा है। अब यहां चल रहे अभियान से माओवादी गतिविधियों पर बड़ी चोट लगी है।
आत्मसमर्पण की अपील से माओवादी भौंचक्के
हिडमा के साथी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में सरकारों को पत्र भेजकर पुनर्वास और आत्मसमर्पण की बात कर रहे हैं। इस कदम ने झारखंड में माओवादी संगठन को अस्थिर कर दिया है और कई नक्सली अपने-अपने बिल में दुबक गए हैं।
झारखंड पुलिस और अर्धसैनिक बलों की सतत कार्रवाई के कारण अब सारंडा और आसपास के क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियों को खत्म करने की उम्मीद और मजबूत हुई है।