
नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक संवेदनशील मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी महिला की उम्र 18 साल से कम है, तो पति-पत्नी के बीच भी यौन संबंध में सहमति का कोई कानूनी अर्थ नहीं होगा। ऐसे मामले में आरोपी के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत कार्रवाई अनिवार्य है।
मामले की पृष्ठभूमि
- मामला 2023 का है, जब महिला नाबालिग थी और उसके पति के साथ संबंध बने।
- महिला गर्भवती हुई और नाबालिग रहते हुए बच्चे को जन्म दिया।
- महिला ने कोर्ट में अपील की कि पति के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो, क्योंकि यह आपसी सहमति का मामला था।
- परिवार ने भी आरोप रद्द करने की मांग की, यह दावा करते हुए कि पीड़िता ने कभी यौन शोषण की बात नहीं कही।
कोर्ट का निर्णय
- जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि भारत में संसद ने यौन सहमति की उम्र 18 वर्ष तय की है।
- नाबालिग के मामले में सहमति का कोई महत्व नहीं है।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच में यह नहीं देखा जाना चाहिए कि नाबालिग ने सहमति दी थी या नहीं, बल्कि यह तय किया जाना चाहिए कि बच्चे की उम्र कम थी और गैरकानूनी कार्य हुआ या नहीं।
- इसलिए पति के कृत्य को POCSO एक्ट के तहत अपराध माना गया।
सख्त टिप्पणी और समाज पर प्रभाव
- कोर्ट ने कहा कि आरोपी को छोड़ देने से समाज में गलत संदेश जाएगा।
- नाबालिग के साथ यौन संबंधों में सहमति को बचाव के तौर पर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता।
मौजूदा स्थिति
- पीड़िता अब बालिग हो चुकी है और अपने बच्चे के साथ कोर्ट में पेश हुई।
- आरोपी के साथ-साथ उसके माता-पिता के खिलाफ भी POCSO और बाल विवाह अधिनियम के तहत मामला दर्ज है।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला साफ संदेश देता है कि नाबालिग की सुरक्षा सर्वोपरि है, और कानूनी उम्र से कम में यौन संबंधों में सहमति का कोई महत्व नहीं। यह समाज में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है।