
देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में जंगली भालुओं के हमले लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले 25 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार 202081 हमलों में 2009 लोग घायल और 71 की मौत हुई है। अकेले 2025 में 71 हमले और 7 मौतें दर्ज की गई हैं।
भालुओं के हमलों की हालिया घटनाएं
- चमोली जिले के पोखरी ब्लॉक में एक महिला भालू के हमले में बुरी तरह घायल हुई। जंगल में चारा लेने गई महिला का चेहरा भालू ने नोच लिया। गंभीर हालत में उसे हेलीकॉप्टर से एम्स ऋषिकेश भेजा गया।
- कुछ मामलों में ग्रामीणों ने भी जवाबी कार्रवाई की, जिससे भालू भाग गए।
- भालुओं के हमले केवल इंसानों तक सीमित नहीं हैं, कई जगह मवेशियों को भी निशाना बनाया गया।
भालुओं के हमलों के पीछे की वजह
वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार इन हमलों के पीछे कई कारण हैं:
- प्राकृतिक आवास का नुकसान – जंगलों में मानवीय गतिविधियों और वर्षा के कारण भालुओं के प्राकृतिक घरों का नुकसान।
- खाद्य संकट – जंगलों में फल-फूल की कमी, जिससे भालू भोजन की तलाश में गांवों और इंसानी बस्तियों की ओर आते हैं।
- मानवीय गतिविधियों का विस्तार – खेत, फसलें और कचरा जंगल के पास होने से भालू आसानी से भोजन पा जाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन – मौसम में बदलाव और मॉनसून के बाद समय (सितंबर–नवंबर) में हमले अधिक।
जोखिम क्षेत्र
उत्तरकाशी, पौड़ी, पिथौरागढ़, चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में हमलों की घटनाएं अधिक हैं। ग्रामीण महिलाएं जंगल से चारा और लकड़ी लेने जाती हैं, वहीं यात्री, तीर्थयात्री और स्कूल जाने वाले बच्चे भी हमलों का शिकार हो सकते हैं।
स्थानीय लोगों में डर का माहौल
- भालू इंसानी बस्तियों में आकर गोशालाओं और घरों के दरवाजे तोड़ देते हैं।
- कई स्थानों पर भालुओं ने गाय और बैल को मारकर खाया, जिससे ग्रामीणों में दहशत फैल गई है।
- वन विभाग ग्रामीणों को सतर्क रहने और भालू से टकराव से बचने के उपाय अपनाने की सलाह दे रहा है।
उत्तराखंड में भालुओं के हमले एक गंभीर वन्य जीवन और मानव सुरक्षा चुनौती बन गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राकृतिक आवास और भोजन की उपलब्धता बढ़ाना, साथ ही मानव गतिविधियों को नियंत्रित करना, इस संकट से निपटने का अहम कदम होगा।