
धनबाद: 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने धनबाद सीट से बड़े उलटफेर के तहत उम्मीदवार बदल दिया। पहले पार्टी ने लोकप्रिय नेता एके राय के सामने बिहार के पूर्व मंत्री सत्यनारायण दुदानी को उतारा था। नामांकन और प्रचार शुरू होने के बाद अचानक शीर्ष नेतृत्व ने दुदानी को हटाकर प्रोफेसर रीता वर्मा को प्रत्याशी घोषित कर दिया।
पति की शहादत के बाद चुनावी मैदान में उतरीं
तब तक रीता वर्मा शहीद पुलिस अधीक्षक रणधीर वर्मा की पत्नी के रूप में चर्चित हो चुकी थीं। चार महीने पहले ही उन्होंने अपने पति को खोया था। भाजपा ने उनके प्रति जनसहानुभूति का फायदा उठाते हुए अंतिम समय में उन्हें उम्मीदवार बनाया।
रीता वर्मा ने राजनीति में कदम रखते ही धमाका किया। उन्होंने धनबाद की सीनियर नेता एके राय को करीब 85 हजार वोटों से हराकर तहलका मचा दिया। इसके बाद रीता वर्मा ने 1996, 1998 और 1999 में लगातार चुनाव जीतकर अपनी पकड़ मजबूत की। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनीं।
रणधीर वर्मा की वीरगाथा
रीता वर्मा के पति, अशोक चक्र विजेता और धनबाद के पूर्व कर्तव्यपरायण पुलिस अधीक्षक रणधीर वर्मा, की शहादत पूरी देश के लिए मिसाल बनी।
3 जनवरी 1991: दिन के करीब दस बजे, रणधीर वर्मा अपने आवास पर थे। तभी उन्हें हीरापुर स्थित बैंक ऑफ इंडिया में लुटेरों के घुसने की सूचना मिली। उन्होंने बिना पुलिस फोर्स के रिवॉल्वर लेकर मौके पर पहुँचकर लुटेरों को रोकने की कोशिश की। इस मुठभेड़ में रणधीर वर्मा शहीद हो गए, लेकिन अपने साहस से एक आतंकी को मार गिराया।