
लखनऊ: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम ने एक नया राजनीतिक युग शुरू कर दिया है। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिहार में अपने प्रभाव और रणनीतिक कौशल से न केवल भाजपा और एनडीए के उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की, बल्कि उन्होंने बिहार की राजनीति के दिग्गज नेता, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के सामाजिक समीकरण को भी ध्वस्त कर दिया।
1. जातीय समीकरणों का टूटना
बिहार चुनाव में जिस तरह जातीय समीकरणों को लेकर लालू यादव की पॉलिटिक्स पर आधारित रणनीति ने दशकों तक काम किया, इस बार वही समीकरण पूरी तरह से नाकाम साबित हुए। इस चुनाव ने यह साबित कर दिया कि चुनावी जमीन पर सक्रिय रहकर रणनीति बनाने और सही मुद्दों को उठाने से बड़ी जीत हासिल की जा सकती है, न कि केवल जाति आधारित गोलबंदी से।
2. सीएम योगी का प्रभाव
बिहार चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने 31 रैलियां और सभाएं कीं। इनमें से 27 सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार विजयी रहे। इस दौरान उनका स्ट्राइक रेट लगभग 87 प्रतिशत रहा, जो बहुत ही प्रभावशाली था। जबकि अखिलेश यादव ने महज 22 सीटों पर प्रचार किया, और उनका स्ट्राइक रेट सिर्फ 9 प्रतिशत रहा। यह दिखाता है कि योगी का चुनावी मैनेजमेंट और संदेश लोगों तक गहरे असर से पहुंचा।
3. दानापुर में योगी का प्रभाव
बिहार चुनाव में सबसे बड़ी सियासी टक्कर दानापुर विधानसभा सीट पर देखने को मिली, जहां योगी आदित्यनाथ और लालू प्रसाद यादव के बीच सीधी टक्कर थी। इस सीट से राजद के उम्मीदवार रीतलाल राय थे, जिन्हें लालू यादव ने अपना समर्थन दिया था। वहीं, भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव को उतारा था।
योगी आदित्यनाथ ने दानापुर में रामकृपाल यादव के लिए चुनाव प्रचार किया, और उनका यह प्रचार अभियान जीत में निर्णायक साबित हुआ। सीएम योगी ने अपनी रैलियों में जातिवाद, घोटालों और “जंगलराज” का मुद्दा उठाया, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भाजपा के पक्ष में वोट ट्रांसफर हुआ।
4. लालू के परिवारवाद पर वार
योगी आदित्यनाथ ने बिहार चुनाव के दौरान एक मजबूत रणनीति अपनाई, जिसमें उन्होंने लालू प्रसाद यादव के परिवारवाद और घोटालों को प्रमुख मुद्दा बनाया। योगी ने इसे एक चेतावनी के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे राज्य के मतदाता उनके पक्ष में आकर्षित हुए।
दानापुर सीट पर शुरू में रीतलाल यादव की बढ़त बनी रही, लेकिन जैसे ही शहरी क्षेत्र के ईवीएम खुले, खेल बदल गया और रामकृपाल यादव ने जीत हासिल की। यह दिखाता है कि योगी के हिन्दुत्व और विकास आधारित संदेश ने सामाजिक समीकरण को तोड़ने में सफलता पाई।
5. राजद के लिए धक्का
इस चुनाव में लालू यादव के समर्थन से दानापुर और फुलवारीशरीफ में प्रचार करने के बावजूद, उनका प्रभाव न के बराबर साबित हुआ। फुलवारीशरीफ से जदयू के श्याम रजक और एकमा से मनोरंजन सिंह की जीत ने यह साफ कर दिया कि राजद का पुराना सामाजिक आधार अब कमजोर हो गया है।
यहां तक कि लालू यादव द्वारा प्रचारित सीटों पर भी भाजपा के उम्मीदवारों को बढ़त मिली। इसके बावजूद लालू परिवार के करीबी उम्मीदवारों को जीत दिलाने में वह सफल नहीं हो सके।
6. उत्तर प्रदेश की राजनीति का असर
योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी ने यह भी सिद्ध कर दिया कि उत्तर प्रदेश की राजनीति अब बिहार में भी प्रभावी हो चुकी है। योगी ने न सिर्फ बिहार के मतदाताओं को आकर्षित किया, बल्कि उन्होंने प्रदेश की राजनीति से जुड़ी कई समस्याओं को भी सामने रखा, जिससे जनता में एक नई उम्मीद जगी।
7. राजद का पतन
बिहार चुनाव के परिणाम ने यह साफ कर दिया कि लालू प्रसाद यादव की राजनीति अब कमजोर हो गई है। उनकी रणनीति और सामाजिक समीकरण अब पुराने हो गए हैं, और इसका परिणाम राजद की हार के रूप में सामने आया है। इससे पार्टी की स्थिति भी कमजोर हो गई है, और बिहार में विपक्षी राजनीति में भी बदलाव की संभावना बनी है।
निष्कर्ष:
योगी आदित्यनाथ ने बिहार में अपनी चुनावी ताकत और रणनीति से यह साबित कर दिया कि वे केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उनकी राजनीतिक चातुर्यता ने बिहार में भी एक नया मोड़ लिया है। उनके प्रभाव ने लालू प्रसाद यादव के जातीय समीकरणों को ध्वस्त कर दिया और भाजपा की विजय को सुनिश्चित किया। अब बिहार की राजनीति में न सिर्फ भाजपा बल्कि योगी के नेतृत्व को भी महत्वपूर्ण रूप से लिया जाएगा।