
पटना: बिहार के चुनावी माहौल में सीमांचल और कोसी क्षेत्र की राजनीति में मुसलमान समुदाय को लेकर सियासी तूफान उठ गया है। भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं ने सीमांचल में बसे मुसलमानों को ‘घुसपैठिया’ कहकर चुनावी मुद्दा बनाया है।
दरअसल, इन मुसलमानों में से कुछ खुद को ‘शेरशाहाबादी मुस्लिम’ बताते हैं। ये लोग मूलतः पश्चिम बंगाल के हैं, बांग्ला बोलते हैं और ऐतिहासिक रूप से शेरशाह सूरी से अपने संबंध का दावा करते हैं। वहीं, क्षेत्रीय मुस्लिम समुदाय, जिन्हें स्थानीय लोग ‘देसी मुस्लिम’ कहते हैं, मुख्य रूप से सुरजापुरी और कुल्हैया बोलते हैं।
शेरशाहाबादी vs देसी मुस्लिम
सीमांचल के स्थानीय मुस्लिम समुदाय सुरजापुरी और कुल्हैया मुस्लिमों में बंटे हैं। सुरजापुरी आबादी सबसे बड़ी है और किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार की कई विधानसभा सीटों में निर्णायक भूमिका निभाती है।
शेरशाहाबादी मुस्लिम उर्दू-बंगाली मिक्स भाषा बोलते हैं और अपने वंशजों को शेरशाह सूरी की सेना का हिस्सा मानते हैं। स्थानीय मुसलमान इन्हें अक्सर भटिया, बधिया या मलदहिया कहकर संबोधित करते हैं, जबकि शेरशाहाबादी इसे अपमानजनक मानते हैं।
सीमांचल की सियासत में असर
- सीमांचल के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिलों में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 37% से 67% तक है।
- 2020 में इस क्षेत्र से 11 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, जिनमें 6 सुरजापुरी थे।
- ओवैसी की AIMIM पार्टी ने 2020 में 5 सीटें जीतकर क्षेत्रीय राजनीति में बड़ा बदलाव किया।
- इस बार कांग्रेस 12, RJD 9, VIP 2 और CPIML 1 सीट पर चुनाव लड़ रही है। NDA में BJP 11, JDU 10 और LJP(R) 3 सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव से पहले एनडीए गठबंधन की रणनीति मुस्लिम वोटों को ‘देसी’ और ‘शेरशाहाबादी’ में बांटकर ध्रुवीकरण करने की होगी। इससे वोट बैंक कमजोर हो सकता है। चुनाव परिणाम 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही स्पष्ट होंगे।