
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदाताओं ने जबरदस्त उत्साह और जोश दिखाया। 121 सीटों पर हुए मतदान में 60.13% मतदान दर्ज किया गया, जो लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह दर्शाता है कि जनता राजनीति से उदासीन नहीं है और लोकतंत्र जीवंत है।
बड़े नाम कतार में
इस चरण में महागठबंधन के CM उम्मीदवार तेजस्वी यादव, डिप्टी CM विजय कुमार सिन्हा, सम्राट चौधरी समेत कई बड़े नेताओं की किस्मत दांव पर लगी थी। वहीं, अभिनेता से नेता बने खेसारी लाल यादव, गायक मैथिली ठाकुर जैसे उम्मीदवारों के चुनावी परिणाम भी जनता की सोच का परिचायक होंगे। साथ ही बाहुबलियों की भी लड़ाई इस चरण में महत्वपूर्ण रही।
भविष्य का फैसला
बिहार में पिछले दो दशकों से सत्तासीन नीतीश कुमार या उनकी जगह कोई और—यह सवाल इस बार इतनी मजबूती से जनता के सामने आया है कि हर वोट का महत्व बढ़ गया है। 2020 के चुनाव की तुलना में इस बार मतदान प्रतिशत 8.3% बढ़ा, जो दर्शाता है कि जनता ने बदलाव और विकल्प को लेकर गंभीर सोच दिखाई।
ज्यादा मतदान का संदेश
अक्सर ज्यादा मतदान को राजनीतिक बदलाव का संकेत माना जाता है। हालांकि बिहार में कई फैक्टर काम कर रहे हैं। पिछली बार कोविड-19 की छाया और इस बार स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के बावजूद मतदाता पोलिंग बूथ तक पहुंचे और लोकतंत्र में अपनी भागीदारी दर्ज कराई।
सिस्टम पर जनता का भरोसा
विपक्ष के कई आरोपों और विवादों के बीच भी, जनता ने अपनी वोटिंग ताकत दिखाकर यह संदेश दिया कि चुनावी प्रक्रिया पर भरोसा कायम है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा मतदान से पहले उठाए गए नए आरोप और SIR की फाइनल लिस्ट में करीब 47 लाख कम वोटर होने जैसे मुद्दों के बावजूद मतदाता मतदान के लिए सक्रिय रहे।
चुनाव आयोग की पारदर्शी पहल
इस बार चुनाव आयोग ने रियल-टाइम डेटा उपलब्ध कराने की तैयारी की, जिससे वोटिंग प्रतिशत पर किसी तरह का विवाद कम हुआ। कुछ जगहों से विवाद की खबरें आईं, लेकिन इसके बावजूद जनता ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया, जो लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत है।
बिहार के मतदाता पहले चरण में ही अपने जिम्मेदार और जागरूक दृष्टिकोण से यह संदेश दे चुके हैं कि लोकतंत्र में उनकी भागीदारी अटूट है।