Friday, November 7

क्या हरियाणा में कांग्रेस वाकई “वोट चोरी” से हारी थी? मैदान में जो दिखा, उसने सच्चाई उजागर कर दी

हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणामों को एक साल बीत चुका है, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में अपनी तथाकथित “H-फाइल्स” जारी कर एक नया विवाद खड़ा कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में हर आठवां मतदाता फर्जी है और बड़े पैमाने पर “वोट चोरी” हुई है। लेकिन उन्होंने इन दावों के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया।

राहुल गांधी यह सवाल उठाते हैं कि जब कांग्रेस को अपनी जीत का पूरा भरोसा था, तो भाजपा को बहुमत कैसे मिल गया। मगर भाजपा या चुनाव आयोग पर उंगली उठाने से पहले उन्हें यह बताना होगा कि कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त करने में पूरा एक साल क्यों लग गया? और आखिर पार्टी अब भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा परिवार से आगे नई नेतृत्व पंक्ति क्यों नहीं बना पाई? असल समस्या शायद मतदाता सूची में नहीं, बल्कि कांग्रेस के अंदर ही छिपी है।

कांग्रेस का अंदरूनी पतन

हमारी जमीनी रिपोर्टिंग में साफ दिखा कि कांग्रेस की “लहर” सिर्फ मीडिया की सुर्खियों में थी, जनता के बीच नहीं। हुड्डा गुट ने पार्टी पर पूरी तरह कब्जा जमा लिया था, जिससे अन्य वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया। कुमारी सैलजा समेत कई नेताओं को हाशिये पर धकेल दिया गया। यह असंतोष बूथ स्तर तक दिखा, जहाँ कांग्रेस कार्यकर्ता अपने ही गुटों में बँटे नजर आए।

कई सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा से ज्यादा अपने ही गुट के विरोधी धड़े से लड़ते दिखे। चुनाव कार्यालयों में कार्यकर्ता रणनीति बनाने के बजाय अपने नेताओं की आलोचना में व्यस्त थे।

कांग्रेस ने कई ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारे जो धनबल और दिखावे के भरोसे थे, न कि जनता के जुड़ाव पर। किसी ने स्टार प्रचारकों के शो में अधिक समय लगाया, तो कोई इतना नशे में रहता कि दिनभर प्रचार नहीं कर पाता — उसकी जगह उसका बेटा प्रचार संभालता रहा। एक अन्य उम्मीदवार पार्टी के घोषणापत्र तक की मुख्य बातें याद नहीं रख पा रहे थे।

रैलियों में भीड़ तो दिखी, लेकिन उनमें बच्चे अधिक थे — जिनसे जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता भाजपा को वोट देंगे। यहाँ तक कि जिन वर्गों ने कांग्रेस नेताओं का स्वागत किया, उनमें से अधिकांश ने निजी बातचीत में भाजपा के पक्ष में मतदान की बात कही।

भाजपा की रणनीति: संगठन, नहीं केवल प्रचार

दूसरी ओर, भाजपा का संगठन अनुशासित और सुसंगठित था। आरएसएस और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बेहद मजबूत दिखा। हर विधानसभा क्षेत्र में प्रशिक्षित “माइग्रेटरी टीमें” बूथ स्तर पर मतदाता पर्चियाँ बाँटने और पोलिंग एजेंटों की निगरानी में जुटी थीं।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी को देखते हुए भाजपा ने चतुराई से प्रचार सामग्री से उनका चेहरा हटा दिया और आम जनता — युवाओं, किसानों और महिलाओं — को अभियान का चेहरा बनाया। उनके पोस्टरों में पारदर्शिता (“बिना रिश्वत की नौकरी”), किसान हित (“24 फसलों पर एमएसपी”) और महिला सशक्तिकरण (“हर योजना का लाभ सीधे खाते में”) जैसे संदेश उभरे।

चुनाव के अंतिम 10 दिनों में भाजपा ने पूरा दम लगा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार बड़ी सभाएँ कीं, जबकि जे.पी. नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ समेत कई दिग्गज नेता मैदान में उतरे। भाजपा ने 150 से अधिक जनसभाएँ कीं, जबकि कांग्रेस की संख्या मुश्किल से 70 रही।

परिणामस्वरूप, कांग्रेस का “हम लौट रहे हैं” वाला आत्मविश्वास फीका पड़ गया। भाजपा ने हुड्डा परिवार को वंशवाद के प्रतीक के रूप में पेश किया और जनता को याद दिलाया कि रोहतक केंद्रित विकास मॉडल ने बाकी जिलों की उपेक्षा की।

धर्म, जनभावना और नतीजा

योगी आदित्यनाथ के तीखे भाषणों ने चुनाव को धार्मिक मोड़ दिया। यह दौर नवरात्रि के त्योहार के बीच था, जिससे भाजपा की सांस्कृतिक अपील और गहरी हुई।

कांग्रेस ने किसान आंदोलन और पहलवानों के प्रदर्शन को मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन जनता के एक बड़े हिस्से ने इसे “राजनीतिक नाटक” माना। प्रधानमंत्री मोदी के भावनात्मक भाषण, जिसमें उन्होंने सेना के सम्मान और राष्ट्रभक्ति की बात की, ने “अग्निवीर योजना” को लेकर गुस्से को काफी हद तक शांत कर दिया।

गाँवों में लोगों ने भाजपा सरकार की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजनाओं, पारदर्शिता और रोजगार पहलों की खुलकर सराहना की। महिलाओं ने कहा कि उन्हें अब पहले से अधिक सुरक्षा और सम्मान महसूस होता है। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाओं से जुड़ाव भावनात्मक रूप से गहरा था।

राहुल गांधी के “वोट चोरी” के आरोप का सचराहुल गांधी का दावा था कि कई परिवारों में “सैकड़ों फर्जी मतदाता” हैं, पर जब हमने राय विधानसभा क्षेत्र में जांच की तो वहाँ के लोगों ने बताया कि यह बड़े संयुक्त परिवारों का मामला था, न कि फर्जी वोटों का। वहीं “ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर” वाले कथित फर्जी वोटर की कहानी भी निराधार साबित हुई — स्थानीय महिलाओं ने खुद वोट डालने की पुष्टि की और किसी को इस तरह की घटना की जानकारी नहीं थी।

मतदाता सूची में त्रुटियाँ जरूर हो सकती हैं, लेकिन उसे “वोट चोरी” का नाम देना बिना सबूत के अधिक हताशा का प्रतीक लगता है, न कि हकीकत का।

जमीनी सच्चाई यही रही कि भाजपा की अनुशासित संगठन-शक्ति और रणनीतिक प्रबंधन ने कांग्रेस की आपसी कलह, असमंजस और भ्रमित नेतृत्व को पूरी तरह पछाड़ दिया।

राहुल गांधी भले ही अपनी रिपोर्ट का नाम “H-फाइल्स” रखें — लेकिन असल में “H” शायद हरियाणा से कम और हुड्डा से अधिक जुड़ा हुआ लगता है।

— नीरज कुमार दुबे

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