
पटना: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्तों में पिछले कुछ वर्षों में काफी प्रगाढ़ता आई है। मंच पर दोनों नेताओं की बॉन्डिंग अक्सर देखने को मिलती है। नीतीश कुमार कई बार सम्मान में पीएम मोदी के पैर छूने का प्रयास करते रहे, जिसे मोदी ने शालीनता से रोका।
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपनी जीवनी ‘गोपालगंज से रायसीना’ में दोनों नेताओं की दोस्ती और उसके राजनीतिक पहलुओं का खुलासा किया है। लालू के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को नीतीश और मोदी पसंद नहीं थे।
गुजरात दंगे और नीतीश का रवैया
2002 के गुजरात दंगों के दौरान, जब मोदी पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने का दबाव था, तब आडवाणी ने उन्हें बचाया। वाजपेयी चाहते थे कि मोदी पद छोड़ें, लेकिन आडवाणी ने उनका समर्थन किया। लालू बताते हैं कि नीतीश कुमार ने गुजरात में हुई हिंसा के विरोध में वाजपेयी सरकार में अपने मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया। बल्कि 2003 में उन्होंने गुजरात जाकर मोदी की तारीफ की और देश सेवा के लिए उनके योगदान की सराहना की।
नीतीश- मोदी की राजनीतिक दोस्ती
लालू यादव के अनुसार, नीतीश और मोदी अच्छे दोस्त बन गए। नीतीश ने 1999 में रेल मंत्री बनने के बाद बीजेपी के कट्टरपंथियों से रिश्ते बनाए और अरुण जेटली जैसे नेताओं से नजदीकी की। 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले आडवाणी ने नीतीश को एनडीए का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, जबकि वाजपेयी ने कभी उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया।
नीतीश- मोदी के संबंधों में खटास
लालू की किताब के अनुसार, मोदी की संघ परिवार में मजबूत स्थिति और प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा के कारण नीतीश ने व्यक्तिगत फायदे के लिए राजनीतिक अवसरों का लाभ उठाया। लालू ने नीतीश को सियासत में स्वार्थी और चालाक नेता के रूप में पेश किया है।
