
नवाज़–ज़रदारी ने मिलाया हाथ, DG-ISI भी मैदान में—बड़ा खुलासा**
इस्लामाबाद: पाकिस्तान में सेना और सियासत के बीच शक्ति संघर्ष एक बार फिर चरम पर पहुँच गया है। आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को तय समय सीमा बीत जाने के बावजूद चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) नियुक्त नहीं किया गया है। इसी बीच पाकिस्तानी सेना के पूर्व अधिकारी आदिल राजा के दावे ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। उनका कहना है कि मुनीर को CDF बनने से रोकने के लिए देश के दो बड़े राजनीतिक विरोधी—नवाज़ शरीफ और आसिफ अली ज़रदारी—ने इस बार हाथ मिला लिया है।
नवाज़–ज़रदारी की संयुक्त रणनीति
आदिल राजा के मुताबिक, असीम मुनीर भविष्य में अपार शक्ति हासिल कर सकते हैं। सेना में उन्होंने यह वादा किया है कि ताकत मिलने पर वे राजनीतिक दिग्गजों और बड़े सैन्य अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की फाइलें खोलेंगे तथा प्रशासनिक ढांचे में बड़े बदलाव लाएँगे।
इसी आशंका से नवाज़ शरीफ और ज़रदारी दोनों एकजुट होकर मुनीर का रास्ता रोकने की रणनीति बना रहे हैं।
संविधान संशोधन के बाद CDF का कार्यकाल 5 वर्ष तय किया गया है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि असीम मुनीर इस पद का उपयोग कर आगे सत्ता पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर सकते हैं। राजनीतिक नेतृत्व को यही डर सताता है।
DG-ISI असीम मलिक भी संघर्ष का हिस्सा
स्थिति को और जटिल बनाती है ISI के शक्तिशाली DG असीम मलिक की भूमिका। आदिल राजा के अनुसार, मलिक भी असीम मुनीर के खिलाफ हैं, परंतु उनका झुकाव ज़रदारी की ओर है। नवाज़ शरीफ से पुरानी रंजिश के कारण वह शरीफ का हिस्सा बनने को तैयार नहीं, लेकिन मुनीर के CDF बनने का वे भी विरोध कर रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि DG-ISI की यह नाराज़गी महत्वाकांक्षा से जुड़ी है। असीम मलिक भविष्य में पाकिस्तान के फोर-स्टार जनरल, यानी सेना प्रमुख बनना चाहते हैं। लेकिन यदि असीम मुनीर CDF बन जाते हैं, तो वही दोनों पद संभालेंगे—इसलिए मलिक के लिए रास्ता बंद हो जाएगा।
पाकिस्तान में सत्ता का बड़ा टकराव
CDF की कुर्सी केवल एक सैन्य पद नहीं, बल्कि समूचे सुरक्षा ढांचे पर नियंत्रण का केंद्र बन सकती है। यही कारण है कि पाकिस्तान की राजनीति और सेना दोनों में हलचल मची हुई है।
एक तरफ जनरल असीम मुनीर अपने ‘सुपरकमांडर’ विज़न के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर नवाज़–ज़रदारी गठजोड़ और DG-ISI मिलकर उनके उभार को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
पाकिस्तान में आने वाला समय सत्ता, सेना और रणनीति के इस बड़े संघर्ष को और भी तीखा बना सकता है।