
इस्लामाबाद।
खुद को इस्लामी मूल्यों का प्रहरी बताने वाले पाकिस्तान ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने उसकी वैचारिक पहचान पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। पचास वर्षों से अधिक समय के प्रतिबंध के बाद पाकिस्तान की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी शराब कंपनी मरी ब्रूअरी को शराब के विदेशी निर्यात की अनुमति दे दी गई है। इसके साथ ही पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय शराब बाजार में कदम रखने जा रहा है।
इस फैसले के बाद रावलपिंडी स्थित मरी ब्रूअरी की फैक्ट्री में उत्पादन तेज कर दिया गया है। शराब की बोतलों और कैनों से भरी फैक्ट्री का यह दृश्य उस मुस्लिम-बहुल देश में चौंकाने वाला है, जहां शराब पीना, खरीदना और बेचना मुसलमानों के लिए गैरकानूनी है।
ब्रिटिश दौर से लेकर आज तक का सफर
मरी ब्रूअरी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के दौरान हुई थी। उस समय इसका उद्देश्य ब्रिटिश सैनिकों और औपनिवेशिक समुदाय की मांग पूरी करना था।
1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद और खासकर जुल्फिकार अली भुट्टो के शासनकाल में शराब को लेकर सख्त कानून लागू किए गए। बावजूद इसके, मरी ब्रूअरी सीमित लेकिन प्रभावशाली ग्राहक वर्ग के सहारे दशकों तक टिकी रही।
पारसी परिवार के हाथों में कारोबार
इस कंपनी का संचालन कर रहे हैं इस्फान्यार भंडारा, जो पाकिस्तान के छोटे लेकिन प्रभावशाली पारसी समुदाय से आते हैं। वह इस व्यवसाय की तीसरी पीढ़ी हैं और खुद पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के सदस्य भी रह चुके हैं।
भंडारा के मुताबिक, उनके दादा और पिता ने भी निर्यात लाइसेंस की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली। वर्षों की लॉबिंग के बाद अब जाकर यह मंजूरी हासिल हो सकी है।
सेना प्रमुख के घर के पास शराब फैक्ट्री
एक और दिलचस्प पहलू यह है कि मरी ब्रूअरी की बड़ी फैक्ट्री रावलपिंडी में उस इलाके के पास स्थित है, जहां पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर का निवास है। यह इलाका देश के सबसे अधिक सुरक्षा वाले क्षेत्रों में गिना जाता है।
इस तथ्य ने पाकिस्तान में सत्ता, सेना और कारोबार के आपसी रिश्तों पर नई बहस छेड़ दी है।
‘सीक्रेट लवर’ जैसा रिश्ता
पाकिस्तान के जाने-माने कॉलमनिस्ट फसी जका कहते हैं,
“शराब के साथ पाकिस्तान का रिश्ता किसी गुप्त प्रेमी जैसा है। कानून में बैन है, लेकिन हकीकत में खपत किसी से छिपी नहीं है।”
अमेरिका तक जाती थी पाकिस्तानी शराब
निर्यात प्रतिबंध से पहले मरी ब्रूअरी के उत्पाद भारत, अफगानिस्तान, खाड़ी देशों और अमेरिका तक जाते थे।
भंडारा का कहना है कि फिलहाल कंपनी का मकसद मुनाफा नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दोबारा अपनी पहचान बनाना है। कंपनी में करीब 2,200 कर्मचारी काम करते हैं और विज्ञापन पर रोक के चलते ब्रांड चुपचाप अपने इतिहास और गुणवत्ता के दम पर आगे बढ़ रहा है।
इस्लामी कानून और आर्थिक मजबूरी
पाकिस्तान में 1970 के दशक से मुसलमानों के लिए शराब पूरी तरह प्रतिबंधित है। देश की करीब 24 करोड़ आबादी में से केवल 90 लाख गैर-मुस्लिम ही कानूनी तौर पर शराब खरीद सकते हैं।
ऐसे में निर्यात की अनुमति यह संकेत देती है कि गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान अब धार्मिक पाबंदियों से ऊपर आर्थिक जरूरतों को रखने को मजबूर हो गया है।
निष्कर्ष
मरी ब्रूअरी को मिली निर्यात अनुमति सिर्फ एक कारोबारी फैसला नहीं, बल्कि पाकिस्तान की दोहरी सोच और आर्थिक बेबसी की कहानी है।
एक ओर इस्लामिक कानूनों का सख्त दावा, दूसरी ओर शराब से विदेशी मुद्रा कमाने की तैयारी—यह विरोधाभास बताता है कि पाकिस्तान अब विचारधारा नहीं, इकॉनमी के सहारे फैसले कर रहा है।