Thursday, December 4

“पुतिन को मना लीजिए प्लीज…” यूरोप की बढ़ी धुकधुकी, पीएम मोदी से बड़ी उम्मीदें — आज दिल्ली आ रहे रूसी राष्ट्रपति

नई दिल्ली/मॉस्को: रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच कूटनीति का केंद्र एक बार फिर भारत बन गया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आज भारत की यात्रा पर आ रहे हैं। युद्ध शुरू होने के बाद यह उनका पहला भारत दौरा है, और इस मुलाकात से ठीक पहले यूरोपीय देशों में बेचैनी तेजी से बढ़ गई है।
कई यूरोपीय देशों के राजनयिक और वरिष्ठ अधिकारी भारत से निजी तौर पर गुहार लगा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुतिन को युद्ध रोकने के लिए मनाएं।

पूर्वी यूरोप के कई देश मानते हैं कि यदि यूक्रेन में युद्ध जारी रहा तो खतरा सीधे उनकी सीमाओं तक पहुँच सकता है। इसके चलते पूरे यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था भी हिल सकती है।
यूरोपीय अधिकारियों का मानना है कि—
“पुतिन पीएम मोदी की बात सुनते हैं… मोदी स्वयं कह चुके हैं कि युद्ध से समाधान नहीं निकलता। कृपया पुतिन को समझाइए।”

यह संदेश उस रवैये से बिल्कुल अलग है जो यूरोप ने युद्ध की शुरुआत में अपनाया था। 2022 में यूरोपीय देश भारत पर दबाव डालते थे कि वह रूस की आलोचना करे, लेकिन अब वही देश ‘विनम्रता’ के साथ भारत से मदद मांग रहे हैं।

भारत की भूमिका — आलोचना नहीं, पर संकेत स्पष्ट

भारत ने रूस के हमले की कभी खुली निंदा नहीं की, लेकिन बूचा नरसंहार पर भारत ने खुलकर चिंता जताई और अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की। यह भारत का एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ कूटनीतिक कदम था।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में युद्ध से जुड़े प्रस्तावों पर अनुपस्थित रहकर अपने कूटनीतिक संतुलन को बनाए रखा है।

यूरोपीय देश भारत से क्यों कर रहे हैं उम्मीदें?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार,

  • यूरोप भारत का बड़ा तकनीकी और पूंजी निवेश स्रोत है,
  • कई यूरोपीय देश भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बन चुके हैं,
  • यूरोपीय संघ के शीर्ष नेताओं को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है।

इसी कारण यूरोप चाहता है कि मोदी और पुतिन की मुलाकात में यूक्रेन युद्ध का समाधान तलाशने की दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठें।

पुतिन का सख्त संदेश — “युद्ध चाहते हो तो हम तैयार हैं”

पुतिन ने हाल ही में कहा था कि यदि यूरोपीय देश युद्ध चाहते हैं, तो रूस इसके लिए “पूरी तरह से तैयार” है। इस बयान ने यूरोप की चिंता और बढ़ा दी है।

तेल खरीद पर भी दबाव

अमेरिका और यूरोप दोनों ही भारत पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि वह रूस से तेल की खरीद कम करे। उनके मुताबिक, यह खरीद रूस की “युद्ध मशीन” को चलाए रखने में मदद कर रही है। अब सभी की निगाहें मोदी-पुतिन वार्ता पर टिकी हुई हैं।

तीसरे विश्वयुद्ध की आहट?

यूरोपीय देशों का डर अनायास नहीं है। उनका मानना है कि यदि युद्ध यूक्रेन से आगे बढ़ता है, तो यह तीसरे विश्वयुद्ध का रूप भी ले सकता है।
इसीलिए ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राजदूतों ने हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया में एक संयुक्त लेख लिखकर रूस की कार्रवाइयों की कड़ी आलोचना की।

भारत—कूटनीति के केंद्र में

पुतिन और पीएम मोदी के बीच होने वाली यह मुलाकात न केवल रूस-भारत संबंधों के लिए, बल्कि यूरोप-अमेरिका की रणनीतिक चिंताओं के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।
अब दुनिया की निगाहें दिल्ली पर हैं, यह देखने के लिए कि क्या भारत वैश्विक तनाव को कम करने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाता है या नहीं।

Leave a Reply