
ऋषिकेश/पौड़ी गढ़वाल: विश्व प्रसिद्ध परमार्थ निकेतन आश्रम के वरिष्ठ महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज का 90 वर्ष की आयु में मंगलवार को देहावसान हो गया। यह दिन गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी के पावन अवसर पर पड़ा, जिसे मोक्ष प्राप्ति की सर्वोत्तम तिथि माना जाता है।
स्वामी जी लंबे समय से वृद्धावस्था और शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित थे। उनके उपचार के लिए दिल्ली समेत देश के कई बड़े अस्पतालों में प्रयास किए गए, फिर भी वे आश्रम के कार्यों से निरंतर जुड़े रहे।
बीते 15 अक्टूबर को स्वामी जी का 90वाँ जन्मोत्सव परमार्थ निकेतन में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं ने उनके चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित किए।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने बताया कि स्वामी असंगानन्द जी ने मात्र नौ वर्ष की आयु में अपने गुरु महामण्डलेश्वर स्वामी शुकदेवानन्द सरस्वती के चरणों में जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने पहले शाहजहांपुर में शिक्षा ग्रहण की और फिर ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन में अध्यापन, गहन साधना और लाखों श्रद्धालुओं का आजीवन मार्गदर्शन किया।
मंगलवार दोपहर तक स्वामी असंगानन्द जी का पार्थिव शरीर परमार्थ निकेतन में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। इसके बाद गंगा तट पर वैदिक मंत्रोच्चार और पूजन-अर्चन के साथ विधि-विधान से उन्हें समाधि दी गई। समाधि स्थल पर देश-विदेश से आए सैकड़ों संत, शिष्य और श्रद्धालु उपस्थित रहे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “स्वामी असंगानन्द जी महाराज सेवा, साधना और गुरु-भक्ति के जीवंत प्रतीक थे। उनका संपूर्ण जीवन संत परंपरा का अनुपम उदाहरण रहेगा।”
स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज की विरासत हमेशा श्रद्धालुओं के हृदय में जीवित रहेगी।