
बिहार विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक हार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विजय-संबोधन में एक बड़ी राजनीतिक भविष्यवाणी की—**“बहुत जल्द राष्ट्रीय कांग्रेस दो धड़ों में बँटने वाली है।”
उनका यह बयान केवल किसी राजनीतिक कटाक्ष की तरह नहीं था, बल्कि पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं और चुनावी परिदृश्यों को देखें तो यह वक्तव्य एक गहरी रणनीति और संकेतों से भरा हुआ दिखाई देता है।
**मध्यप्रदेश से शुरुआत, महाराष्ट्र तक विस्तार—क्या कांग्रेस टूट के दौर में है?
देश ने देखा कि कैसे मध्यप्रदेश में कांग्रेस को भीतर से तोड़कर भाजपा ने दोबारा सत्ता हासिल की।
इसके तुरंत बाद महाराष्ट्र में भी उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को दो बड़े हिस्सों में बाँटकर सत्ता का नया समीकरण तैयार किया गया।
दोनों राज्यों के उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि भाजपा विपक्षी दलों के अंदर छिपे असंतोष को राजनीतिक अवसर में बदलने में महारथ हासिल कर चुकी है।
कई क्षेत्रीय दलों ने भाजपा पर आरोप लगाया कि—
“भाजपा पीछे के दरवाजे से नेताओं को तोड़कर सत्ता में आने की कोशिश करती है।”
मगर भाजपा का तर्क बिल्कुल उलटा है—
“जो दल जनता से कट जाते हैं, उनमें असंतोष स्वतः पैदा होता है। हम केवल असंतुष्ट नेताओं को सही मंच देते हैं।”
तृणमूल और RJD के ‘सैनिकों’ की ‘घर वापसी’
बंगाल और बिहार दोनों में भाजपा ने कई बार तृणमूल कांग्रेस और राजद के नेताओं को अपने पाले में खींचकर विपक्ष को कमजोर किया।
और फिर बिहार में तो भाजपा ने करिश्मा कर ही दिया—
JD(U) और RJD दोनों के टूटते समीकरणों का लाभ लेकर भाजपा प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
यह सब घटनाएँ कांग्रेस के लिए भयावह संकेत हैं।
कांग्रेस अब न तो बिहार में दिखती है, न बंगाल में, न यूपी में, न ओडिशा में, और दक्षिण भारत में भी उसकी स्थिति लगातार कमजोर हो रही है।
दिल्ली का उदाहरण—केजरीवाल की गिरती जमीन और भाजपा की बढ़ती पकड़
दिल्ली की राजनीति भी कांग्रेस के भविष्य की दिशा दिखाती है।
केजरीवाल ने बार-बार भाजपा पर “तोड़फोड़ राजनीति” का आरोप लगाया, लेकिन शराब घोटाले में कानूनी शिकंजा कसते ही राजनीति की जमीन तेजी से बदल गई।
अंततः भाजपा ने दिल्ली की नगर-राजनीति में निर्णायक प्रवेश कर लिया और रेखा गुप्ता को प्रमुख नेतृत्व की जिम्मेदारी दी।
यह घटनाएँ दिखाती हैं कि भाजपा ने देश की हर राजधानी, हर सूरत-ए-हाल में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर ली है।
क्या कांग्रेस सच में दो भागों में बंटने वाली है?
अब बड़ा प्रश्न यही है—
क्या कांग्रेस पार्टी वाकई दो हिस्सों में बंटने की ओर बढ़ रही है?
इसके तीन बड़े कारण स्पष्ट दिखाई देते हैं:
① नेतृत्व पर गहरा असंतोष — राहुल गांधी पर सवाल
कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता लगातार कह रहे हैं कि—
- “राहुल गांधी का नेतृत्व कांग्रेस को लगातार कमजोर कर रहा है।”
- “पार्टी रणनीति, संगठन और जमीन—तीनों स्तर पर पिछड़ चुकी है।”
- “G-23 नेताओं से लेकर क्षेत्रीय स्तर तक असंतोष फैला हुआ है।”
कांग्रेस में एक बड़ा वर्ग राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं, लेकिन खुलकर विद्रोह भी नहीं कर पा रहा है।
यह स्थिति विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार कर रही है।
② लगातार चुनावी हार से मनोबल गिरा — बिहार ने आखिरी उम्मीदें भी खत्म कीं
कांग्रेस की स्थिति बिहार में लगभग शून्य पर आ चुकी है।
पार्टी न तो गठबंधन चला पा रही है, न अपने उम्मीदवार जिता पा रही है।
यह हार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में निराशा को चरम पर ले आई है।
③ भाजपा की रणनीति — ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ की ओर तेज कदम
यह कोई छिपी बात नहीं कि अमित शाह को भाजपा का चाणक्य कहा जाता है।
उनकी राजनीतिक शैली सरल है:
“विपक्ष को कमजोर करो, असंतुष्टों को अवसर दो, और सत्ता का नया समीकरण बनाओ।”
मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, उत्तराखंड, अरुणाचल…
इन सभी जगहों पर भाजपा ने कांग्रेस को अंदर से तोड़कर सत्ता समीकरण बदले।
कांग्रेस में होने वाले संभावित दो धड़े
अगर कांग्रेस टूटती है, तो दो धड़े साफ दिखेंगे:
① राहुल गांधी समर्थक धड़ा
युवा चेहरों, वामपंथी सोच और सामाजिक न्याय की राजनीति को आगे बढ़ाने वाले नेता।
② कांग्रेस-जनाधार या पुराने संगठनवादी नेता
जिन्हें नेतृत्व और दिशा दोनों पर गंभीर आपत्तियाँ हैं—
जिन्हें लगता है कि “गांधी परिवार पार्टी की जड़ें कमजोर कर रहा है।”
यह विभाजन भले अभी दिखाई न दे, लेकिन उसके संकेत बहुत स्पष्ट हैं।
क्या कांग्रेस की कहानी खत्म? या एक नया अध्याय?
कई राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि—
“कांग्रेस का अस्तित्व अब सिर्फ नाममात्र है। भविष्य क्षेत्रीय दलों का है।”
दूसरी ओर कुछ लोग मानते हैं कि—
“कांग्रेस टूटेगी तो बचे हुए धड़े को खुद को नए रूप में गढ़ने का अवसर मिलेगा।”
लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में कोई भी पार्टी स्थायी रूप से खत्म नहीं होती—
पर नेतृत्व की कमजोरी और संगठन का ढहना किसी भी राष्ट्रीय पार्टी को कमजोर कर देता है।
निष्कर्ष—कांग्रेस का भविष्य एक मोड़ पर खड़ा है
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान
“कांग्रेस जल्द दो धड़ों में बंटने वाली है”
अब एक राजनीतिक भविष्यवाणी से आगे बढ़कर एक वास्तविकता जैसा प्रतीत होता है।
- राहुल गांधी के नेतृत्व पर उठते सवाल
- वरिष्ठ नेताओं का बढ़ता असंतोष
- भाजपा की लगातार मजबूत होती राजनीतिक पकड़
- कांग्रेस की चुनावी हारों की लंबी सूची
इन सबके बीच कांग्रेस का भविष्य अत्यंत अनिश्चित है।
आने वाला समय बताएगा कि—
क्या कांग्रेस दो हिस्सों में बंटकर एक नई राजनीतिक कहानी लिखेगी?
या यह भारत की सबसे पुरानी पार्टी के अंत की शुरुआत है?