
पद्म विभूषण से सम्मानित सोनल मानसिंह भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में एक ऐसा नाम हैं, जिनकी जीवनगाथा हर किसी के लिए प्रेरणा है। 81 साल की उम्र में भी वे मंच पर प्रस्तुति देती हैं और शास्त्रीय नृत्य को नई दिशा देती हैं। नवभारत टाइम्स से खास बातचीत में डॉ. सोनल मानसिंह ने अपने जीवन, करियर और निजी संघर्षों के अनुभव साझा किए।
18 साल की उम्र में लिया नृत्य को जीवन
1960 के दशक में, जब नृत्य को समाज में नीची दृष्टि से देखा जाता था, 18 साल की सोनल पकवासा ने भरतनाट्यम और ओडिसी को अपना जीवन मान लिया। परिवार और समाज के विरोधों को दरकिनार कर उन्होंने बेंगलुरु जाकर गुरु प्रो यूएस कृष्णा राव के पास प्रशिक्षण लिया। “घरवालों ने बहुत ताने दिए, लोग कहते रहे, ‘नाचने वाली बनेगी?’ लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया। मैं पहुंच गई थी गुरुजी के पास, बाकी झेलो,” उन्होंने कहा।
‘नाक कटा दी’ से ‘नाक ऊंची कर दी’ तक का सफर
1963 में घर से भागने के बाद सोनल ने यूरोप में अपनी पहली शादी और प्रस्तुति के दौरान विश्वभर में नाम कमाया। राष्ट्रपति भवन से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक उनकी प्रस्तुति ने उन्हें भारत और विदेशों में पहचान दिलाई। “अगर आपको पता चल जाए कि ये ऊपरवाले का हुकुम है, तो बस तामील करो, आप कभी गलत नहीं जाएंगे। कई बार फड़फड़ाहट होती है, लेकिन बाद में सब बराबर हो जाता है।”
महिला सशक्तिकरण और जीवन के हलाहल
अपनी शर्तों पर जीवन जीना आसान नहीं था। “हमारे जीवन में बहुत हलाहल मिला। ईर्ष्या, पीड़ा, नेगेटिविटी – हमें अपना शिव खुद बनकर इसे पीना पड़ता है। सामाजिक स्टिग्मा, आलोचना, अलगाव – ये सब झेलना पड़ा, लेकिन इससे ही हम मजबूत बनते हैं।”
नृत्य में संदेश और सशक्तिकरण
सोनल मानसिंह की कोरियोग्राफी ‘देवी दुर्गा’, ‘पंचकन्या’ और ‘मानवता’ जैसी प्रस्तुतियों में स्त्री सशक्तिकरण का संदेश प्रमुख रहता है। उनका कहना है कि यह सोच उनके दादा, मंगल दास पकवासा, के प्रगतिशील विचारों और उनके बचपन के अनुभवों से आई।
शास्त्रीय नृत्य का भविष्य और पीढ़ी को संदेश
सोनल मानसिंह का मानना है कि शास्त्रीय नृत्य हमेशा जीवित रहेगा। आज की तेज़ और हड़बड़ी वाली पीढ़ी के बावजूद, शांति और साधना की जरूरत हमेशा रहेगी। उनका संदेश है: “शांति से रहो और दूसरों को भी शांति से रहने दो। जीवन में सौंदर्य के क्षण निकालो। मन को बहने दो, क्योंकि अच्छा-बुरा वक्त गुजर जाएगा।”
सोनल मानसिंह की जीवनगाथा यह दिखाती है कि धैर्य, समर्पण और आत्मविश्वास से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। उनका जीवन न केवल कला के क्षेत्र में, बल्कि महिलाओं और युवाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक है।