
नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ऐतिहासिक भारत यात्रा ने वैश्विक राजनीति में नया संदेश दे दिया है। अमेरिकी विश्लेषक माइकल कुगलमैन ने कहा है कि पुतिन की यह यात्रा साबित करती है कि भारत अमेरिका के किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है। हाल के महीनों में अमेरिकी टैरिफ और पश्चिमी दबाव के बावजूद भारत ने रूस के साथ अपनी रणनीतिक भागीदारी को मजबूती दी है।
ट्रंप की नीतियों ने बढ़ाई भारत-रूस नजदीकी
अमेरिकी विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत रूस से दूरी बना रहा था, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों ने नई दिल्ली और मास्को को दोबारा करीब ला दिया। कुगलमैन ने कहा कि पुतिन और मोदी की मुलाकात सिर्फ औपचारिक यात्रा नहीं थी, बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों को स्पष्ट संकेत थी कि भारत अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ से समझौता नहीं करेगा।
टैरिफ के बावजूद मजबूत हुई साझेदारी
कुगलमैन के अनुसार, अमेरिका के भारी-भरकम टैरिफ के बाद भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात कुछ कम जरूर किया, लेकिन पुतिन की यात्रा से यह साफ हो गया कि दोनों देश रक्षा, व्यापार और ऊर्जा के क्षेत्र में नया रास्ता तय करने के लिए तैयार हैं। “भारत यह दिखाना चाहता है कि वह किसी दबाव में अपने पुराने रणनीतिक साझेदार को नहीं छोड़ेगा,” उन्होंने कहा।
व्यापार घाटा कम करने पर जोर
विशेषज्ञों के अनुसार अब भारत रूस के साथ व्यापार घाटा घटाने की दिशा में तेज कदम उठाएगा। आने वाले समय में रूस को भारत का निर्यात बढ़ सकता है। रक्षा सौदों और तकनीकी सहयोग पर भी दोनों देशों के बीच बातचीत आगे बढ़ने की उम्मीद है।
कुगलमैन ने कहा कि इस यात्रा से पश्चिमी देशों को भी यह समझना होगा कि रूस विश्व मंच पर अकेला या अलग-थलग नहीं हुआ है। भारत के लिए रूस आने वाले समय में भी सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बना रहेगा, हालांकि भारत अपनी निर्भरता को संतुलित करने का प्रयास भी जारी रखेगा।
भारतीय विश्लेषक का भी समर्थन
भारत की विदेश नीति विशेषज्ञ तन्वी मदान का कहना है कि पुतिन की यात्रा भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ का प्रदर्शन है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी देश को रूस के साथ अपने रिश्तों पर वीटो नहीं करने देगा। हालांकि भारत ने अपने अन्य साझेदार देशों—अमेरिका, यूरोप और जापान—की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए कोई बड़ी रक्षा डील की घोषणा नहीं की। विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े समझौते बाद में घोषित किए जा सकते हैं।
मदान ने यह भी कहा कि भारत के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप को जाता है, जबकि रूस को केवल 1 प्रतिशत। इसके बावजूद भारत ने अपने दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ मजबूत रिश्तों का संकेत दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन के सामने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत यूक्रेन में शांति का समर्थक है।