
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग को बड़ा राजनीतिक झटका देते हुए फरवरी 2026 में होने वाले संसदीय चुनावों में भाग लेने की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अवामी लीग पर लगाया गया प्रतिबंध बरकरार रहेगा।
बुधवार को मीडिया को संबोधित करते हुए मुख्य सलाहकार के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि सरकार की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट है और अवामी लीग को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने के फैसले में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा। 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के बाद यह पहला मौका होगा, जब देश की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी को चुनाव से बाहर कर दिया गया है।
अमेरिकी दबाव के बावजूद सरकार अडिग
यह फैसला ऐसे समय सामने आया है, जब अमेरिका के पांच सांसदों ने बांग्लादेश सरकार से “समावेशी और निष्पक्ष चुनाव” कराने की अपील की थी। अमेरिकी सांसदों—ग्रेगरी मीक्स, बिल हुइजेंगा, सिडनी कामलागर-डोव और जूली जॉनसन—ने 23 दिसंबर को मोहम्मद यूनुस को पत्र लिखकर अवामी लीग को बाहर रखने पर गहरी चिंता जताई थी।
सांसदों ने चेतावनी दी थी कि किसी बड़े राजनीतिक दल को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करना लोकतंत्र की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए शफीकुल आलम ने कहा कि उन्होंने यह पत्र अब तक नहीं देखा है और उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
पहले भी लगाए जा चुके हैं प्रतिबंध
गौरतलब है कि मई 2025 में यूनुस सरकार ने अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाया था। इससे पहले अक्टूबर 2024 में पार्टी के प्रभावशाली छात्र संगठन ‘छात्र लीग’ को भी गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। वहीं, 17 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान कमाल को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी, जिसके बाद यह माना जाने लगा था कि बांग्लादेश में शेख हसीना के राजनीतिक भविष्य पर विराम लग चुका है।
लोकतंत्र पर मंडराते सवाल
शेख हसीना पहले ही संकेत दे चुकी हैं कि यदि अवामी लीग को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी गई, तो पार्टी समर्थक मतदान प्रक्रिया से दूर रहेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अवामी लीग के समर्थकों की संख्या आज भी बड़ी है, जो फिलहाल शांत हैं, लेकिन भविष्य में असंतोष खुलकर सामने आ सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि चुनाव बिना किसी प्रमुख विपक्षी दल के कराए गए, तो बांग्लादेश के लोकतांत्रिक ढांचे और राजनीतिक स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं।