
नई दिल्ली, 18 दिसंबर 2025: दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक के मामलों में एक अहम निर्णय सुनाते हुए कहा है कि अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं, तो एक साल तक अलग रहने की कानूनी शर्त को माफ किया जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी रिश्तों को सुधारा नहीं जा सकता और कानून केवल औपचारिकताओं के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
कोर्ट का निर्णय और तर्क
जस्टिस नवीन चावला, नूप जे भंभानी और रेनू भटनागर की बेंच ने कहा कि शादी वयस्कों के बीच स्वतंत्र सहमति का परिणाम होती है, इसलिए आपसी सहमति से तलाक में रुकावट नहीं डालनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि भावनात्मक तर्क के आधार पर तलाक को रोकना अनावश्यक है, क्योंकि यह पति-पत्नी को विवाह के दलदल में फंसा सकता है।
कूलिंग-ऑफ अवधि भी माफ की जा सकती है
बेंच ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B(2) के तहत यह स्पष्ट किया कि तलाक की आपसी सहमति में छह महीने की कूलिंग-ऑफ अवधि भी माफ की जा सकती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अविवाहित या अनिच्छुक पार्टियों को विवाह में मजबूर न किया जाए और वे अपनी स्वतंत्रता के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकें।
भविष्य पर पड़ेगा सकारात्मक असर
कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक में देरी किसी पति या पत्नी को नया जीवन शुरू करने और पुनर्विवाह करने से रोक सकती है। इसलिए एक बार जब पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेने का निर्णय लेते हैं, तो कानून को उनके फैसले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।