Monday, December 15

भारत बनाएगा नया रिकॉर्ड: 2030 तक 9 गीगावाट तक बढ़ेगी डेटा सेंटरों की क्षमता, लेकिन बिजली का सवाल बना चुनौती

नई दिल्ली: भारत में डेटा सेंटरों की क्षमता तेजी से बढ़ रही है। पिछले साल यह करीब 1.4 गीगावाट थी, लेकिन 2030 तक यह 9 गीगावाट तक पहुंचने का अनुमान है। यदि यह लक्ष्य पूरा हुआ, तो भारत एक नया रिकॉर्ड कायम करेगा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इतनी विशाल क्षमता वाले डेटा सेंटरों के लिए आवश्यक बिजली कहां से आएगी।

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डेटा सेंटरों को चाहिए भारी बिजली
डेटा सेंटर 24 घंटे काम करते हैं और इसके लिए बड़ी मात्रा में बिजली की जरूरत होती है। पहले हाइड्रो और थर्मल पावर से काम चल जाता था, लेकिन अब यह पर्याप्त नहीं है। इसलिए सोलर और विंड एनर्जी के स्रोत बढ़ाए जा रहे हैं। साथ ही बैटरी स्टोरेज सिस्टम से बिजली की आपूर्ति स्थिर रखने की योजना है।

भारत ने Renewable Energy में रखा बड़ा लक्ष्य
ट्रेड ब्रेन्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट Renewable Energy क्षमता बनाने का लक्ष्य रखा है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा सोलर एनर्जी का होगा, लगभग 280 गीगावाट। वहीं, विंड एनर्जी भी तेजी से बढ़ रही है, और 2030 तक देश 100 गीगावाट पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल करने की दिशा में है। वर्तमान में भारत में 50 गीगावाट से ज्यादा विंड एनर्जी लगी हुई है, और हर साल 18 गीगावाट से ज्यादा टरबाइन और उनके पार्ट्स तैयार हो रहे हैं।

Renewable Energy क्या है?
Renewable Energy प्रकृति से मिलती है और यह कभी खत्म नहीं होती। उदाहरण के लिए सूरज की रोशनी और हवा हमेशा उपलब्ध रहती है। इसके विपरीत कोयला, पेट्रोल और गैस जैसे संसाधन एक दिन समाप्त हो जाते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। Renewable Energy साफ-सुथरी होती है और प्रदूषण कम करती है।

डेटा सेंटरों की लागत और बिजली की योजना
डेटा सेंटरों में बिजली का खर्च कुल लागत का 30–40 प्रतिशत तक होता है। फिलहाल ग्रिड से यह 7–10 रुपये प्रति यूनिट पड़ती है और कीमतें लगातार बदलती रहती हैं। यदि डेटा सेंटर अपनी खुद की Renewable Energy पैदा करें या लंबी अवधि के लिए बिजली खरीद समझौते करें, तो कीमत 3–4 रुपये प्रति यूनिट तय हो सकती है। इससे लागत स्थिर होगी और मुनाफा बढ़ेगा।

हाइब्रिड सिस्टम से समाधान
सोलर, विंड और बैटरी को मिलाकर हाइब्रिड सिस्टम बनाए जा रहे हैं। यह खासकर उन राज्यों में मदद करेगा, जहां ग्रिड कमजोर है। इस योजना से बिजली की आपूर्ति में रुकावट कम होगी और भारत के डेटा सेंटर सेक्टर को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती मिलेगी।

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