
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 नवंबर, 2025 को जोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार अब विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका तिकड़ी को वैश्विक शासन में बदलाव के लिए स्पष्ट संदेश भेजना चाहिए।
भारत के लंबे समय से UNSC में स्थायी सदस्यता की मांग का समर्थन कई देशों ने किया है। रूस भारत का पुराना मित्र बना हुआ है और भारत की दावेदारी के लिए लगातार समर्थन करता रहा है। अगले महीने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई दिल्ली यात्रा के दौरान भी यह मुद्दा चर्चा में रहेगा।
भारत की दावेदारी क्यों महत्वपूर्ण है
भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र है। देश ने अंतरराष्ट्रीय शांति अभियानों में लगातार योगदान दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, सुरक्षा परिषद का मौजूदा ढांचा 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करता।
भारत का समर्थन करने वाले प्रमुख देश
पांच स्थायी सदस्यों में अमेरिका, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप ने भी इसे खुले तौर पर समर्थन दिया। जापान, ऑस्ट्रेलिया और क्वॉड देशों ने भी भारत की स्थायी सीट की वकालत की।
इसके अलावा, पुर्तगाल, कुवैत, अफ्रीकी संघ, भूटान, मॉरीशस, ब्राजील, जर्मनी और जापान ने भारत को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन किया है।
सबसे बड़ा विरोधी: चीन
हालांकि, चीन भारत की दावेदारी का सबसे बड़ा विरोधी बना हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन एशिया में अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है और पाकिस्तान के साथ करीबी संबंधों के कारण भारत को समर्थन देना उसके लिए मुश्किल है। चीन भारत को सुरक्षा परिषद में बराबरी पर नहीं देखना चाहता और पाकिस्तान में निवेश और सैन्य साझेदारी को देखते हुए इसका समर्थन नहीं करेगा।
निष्कर्ष
भारत को कई शक्तिशाली मित्रों का समर्थन मिला है, लेकिन चीन और उसके समर्थक देश भारत की स्थायी सदस्यता के रास्ते में बड़ी बाधा बने हुए हैं। आगामी दौर की कूटनीतिक बातचीत में यही तय करेगा कि भारत की UNSC में स्थायी सीट की मांग कब साकार होगी।