
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन को सेवा से बर्खास्त करने के फैसले को सही ठहराया है। कमलेसन ने अपनी सिख रेजिमेंट में धार्मिक परेड के दौरान मंदिर और गुरुद्वारे में प्रवेश करने से इनकार किया था। उनका कहना था कि वे प्रोटेस्टेंट ईसाई हैं और गैर-ईसाई धर्मस्थलों में प्रवेश करना उनके धार्मिक विश्वास के खिलाफ है।
इस फैसले ने व्यक्तिगत आस्था और सैन्य अनुशासन के बीच संतुलन पर बहस छेड़ दी है और सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।
लेफ्टिनेंट कमलेसन कौन हैं?
कमलेसन मार्च 2017 में भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में शामिल हुए और तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में तैनात किए गए। इस रेजिमेंट में मुख्य रूप से सिख, जाट और राजपूत सैनिक सेवा देते हैं। उन्हें सिख स्क्वाड्रन बी का ट्रूप लीडर बनाया गया था।
हालांकि, कुछ समय बाद उन्होंने मंदिर और गुरुद्वारे में पूजा में शामिल होने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि उनका एकेश्वरवादी ईसाई धर्म इसे अनुमति नहीं देता। इसके बाद सेना ने उन्हें अनुशासन तोड़ने के आरोप में 2021 में बर्खास्त कर दिया। इस बर्खास्तगी के कारण उन्हें पेंशन और ग्रेच्युटी लाभ का भी नुकसान हुआ।
व्यक्तिगत आस्था और सैन्य अनुशासन का टकराव
कमलेसन ने बर्खास्तगी को चुनौती दी और सेवा में बहाल होने की मांग की थी। यह मामला इस बात को उजागर करता है कि सैनिकों की व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताएं उनके सैन्य कर्तव्यों के साथ कैसे टकरा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने स्पष्ट किया कि सेना में अनुशासन सर्वोपरि है, लेकिन यह भी सवाल उठता है कि व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता को कितनी सीमा तक नजरअंदाज किया जा सकता है।
यह मामला भारतीय सेना में धर्म और कर्तव्य के बीच संतुलन के महत्व पर एक नई बहस खड़ी करता है।