
एनजीटी की अनुमति के बिना अब मध्य प्रदेश में एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा; अधिकारियों को लगाई फटकार*
जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश में हो रही पेड़ों की कटाई को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए साफ कहा है कि “ग्रीन कवर को नष्ट करना विकास नहीं, बल्कि विनाश है।” चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने तल्ख शब्दों में कहा कि जो लोग पेड़ काटने की अनुमति देते हैं, उन्हें कुछ समय प्रदूषित प्रदेशों में रहकर देखना चाहिए, तब हरियाली के महत्व का अहसास होगा।
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि एनजीटी की ओर से गठित 9 सदस्यीय समिति की अनुमति के बिना प्रदेश में एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा। साथ ही सरकार से यह भी पूछा गया है कि अब तक कितने पेड़ काटे गए, कितनों का प्रत्यारोपण किया गया और कटे पेड़ों के एवज में कितने गुना पौधे लगाए जाएंगे—इन सभी की विस्तृत जानकारी अदालत को सौंपी जाए।
सरकार ने मान ली गलती, कोर्ट ने जताई नाराजगी
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से स्वीकार किया गया कि कई स्थानों पर बिना अनुमति पेड़ काटने और प्रत्यारोपण करने की गलती हुई है। सरकार ने बताया कि वन संरक्षण अधिनियम के तहत ट्री ऑफिसर्स की नियुक्ति की जाएगी।
भोपाल में 244 पेड़ों में से 112 का प्रत्यारोपण किया गया है, लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि प्रत्यारोपण की मौजूदा विधियां पेड़ों को बचाती नहीं, बल्कि धीरे-धीरे उन्हें नष्ट कर देती हैं।
अदालत ने उन अधिकारियों के नाम भी मांगे, जिन्होंने गलत तरीके से अनुमति दी।
पेड़ काटने का अधिकार किसके पास?
याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि एनजीटी निर्देशों के अनुसार 25 से अधिक पेड़ काटने की अनुमति केवल राजपत्रित वन अधिकारी या नगर निगम आयुक्त दे सकते हैं।
लेकिन यह अधिकार कई बार अधीनस्थ कर्मचारियों को सौंप दिया जाता है, जो नियमों का उल्लंघन है। अदालत ने इसे “न्यायिक अधिकारों का अनुचित हस्तांतरण” करार दिया।
अखबार की रिपोर्ट पर खुद संज्ञान लिया कोर्ट ने
मामले की शुरुआत तब हुई जब एक अखबार में प्रकाशित खबर में बताया गया कि भोपाल के भोजपुर–बैरसिया रोड निर्माण के लिए 488 पेड़ बिना अनुमति काट दिए गए।
कोर्ट ने इसे पर्यावरण से जुड़ा गंभीर मामला मानते हुए इसे जनहित याचिका में बदलकर सुनवाई शुरू की।
सरकार ने अपने जवाब में कहा कि कलेक्टर ने 448 पेड़ों को स्थानांतरित करने की अनुमति दी थी और जो पेड़ स्थानांतरित नहीं हो सके, उनके बदले 10 गुना पौधे लगाए जाएंगे। 253 पेड़ों का प्रत्यारोपण भी बताया गया।
शिफ्टिंग के नाम पर कटाई! रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्स का मामला भी सामने आया
हस्तक्षेपकर्ता नितिन सक्सेना ने कोर्ट को बताया कि भोपाल में कुछ रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट्स के लिए 244 पेड़ काटने की अनुमति मांगी गई थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि पेड़ों को काटने की परमिशन मुश्किल होने पर ‘शिफ्टिंग’ का नया तरीका अपनाया जा रहा है, लेकिन असल में ट्रांसप्लांटेशन की आड़ में पेड़ काटे जा रहे हैं।
सुनवाई में पता चला कि प्रदेश में कोई ट्री प्लांटेशन पॉलिसी लागू ही नहीं है।
फोटो देखकर कोर्ट ने कहा कि प्रत्यारोपण के नाम पर पेड़ों की सभी शाखाएँ व पत्तियां हटाकर केवल तना दूसरी जगह लगाया जा रहा है, जिससे पेड़ के जीवित बचने की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है।
रेलवे और कलेक्टर कार्यालय में भी बिना अनुमति पेड़ कटाई के आरोप
एक अन्य याचिका में बताया गया कि रेलवे के एक प्रोजेक्ट के लिए 8000 पेड़ काटे गए।
सागर कलेक्टर कार्यालय के विस्तार कार्य के लिए भी बिना अनुमति पेड़ काटे जाने की शिकायत सामने आई।
राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण में भी अवैध कटाई का आरोप लगाया गया।
इन सभी मामलों की सुनवाई को कोर्ट ने एक साथ करते हुए सरकार को सख्त निर्देश जारी किए।
अगली सुनवाई 17 दिसंबर को
कोर्ट के आदेश पर पीडब्ल्यूडी, विधानसभा सचिवालय, नगर निगम भोपाल, प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट, रेलवे अधिकारी समेत सभी संबंधित वरिष्ठ अधिकारी व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हुए।
युगलपीठ ने सभी पक्षों को अगली सुनवाई 17 दिसंबर को पुनः उपस्थित होने के निर्देश दिए।