Monday, December 1

चीफ जस्टिस की बेंच में विदेशी जज, CJI सूर्यकांत बोले – सुप्रीम कोर्ट के लिए ऐतिहासिक क्षण

नई दिल्ली: भारत की सर्वोच्च अदालत में बुधवार को एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब पहली बार छह देशों के मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठ न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में शामिल हुए। इस दौरान सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची बेंच पर बैठे। विदेशी न्यायाधीश कार्यवाही में सक्रिय रूप से शामिल नहीं हुए, लेकिन उनकी उपस्थिति ने इसे एक ‘ग्लोबल बेंच’ का रूप दे दिया।

विदेशी न्यायाधीश कौन-कौन थे:
इस विशेष अवसर पर उपस्थित न्यायाधीश थे –

  • भूटान: ल्योंपो नोरबू त्शेरिंग (मुख्य न्यायाधीश)
  • केन्या: मार्था के. कूमे (मुख्य न्यायाधीश और अध्यक्ष)
  • मॉरीशस: रेहाना बीबी मुंगल्य-गुलबुल (मुख्य न्यायाधीश)
  • श्रीलंका: मुख्य न्यायाधीश
  • मलेशिया: जस्टिस तनु श्री दत्ता नलिनी पथमनाथन (सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायाधीश)
  • नेपाल: जस्टिस सपना प्रधान मल्ला (सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायाधीश)

सुनवाई का विषय:
कार्यवाही के दौरान, एक प्रोफेसर पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप से संबंधित जमानत मामले और आंध्र प्रदेश शराब घोटाला जैसे अहम मामलों पर सुनवाई हुई। कार्यवाही के बाद सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, “इतने सारे कानूनी दिग्गजों का एक साथ सुप्रीम कोर्ट में बैठना एक ऐतिहासिक क्षण है।”

विदेशी न्यायाधीशों की प्रतिक्रिया:

  • केन्या की मुख्य न्यायाधीश कूमे ने कहा कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक व्याख्याएँ उनके देश के सुप्रीम कोर्ट के लिए प्रेरणा हैं।
  • भूटान के न्यायाधीश त्शेरिंग ने बताया कि भारत का ‘बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन’ उनके लिए मार्गदर्शक सिद्धांत है।
  • श्रीलंका के न्यायाधीश ने साझा किया कि मद्रास में सुप्रीम कोर्ट 1800 में और श्रीलंका का सुप्रीम कोर्ट 1801 में स्थापित हुआ था, और दोनों देशों ने समान कानूनी प्रणाली का पालन किया है।
  • नेपाल की जस्टिस मल्ला ने कहा कि वह इस ‘ग्लोबल बेंच’ का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रही हैं।
  • मलेशिया की जस्टिस पथमनथन ने बताया कि उनके देश का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित न्यायशास्त्र का पालन करता है।

भारतीय पक्ष का स्वागत:
भारत सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सभी विदेशी मेहमानों का स्वागत किया। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और राकेश द्विवेदी ने वकीलों की ओर से उनका अभिनंदन किया।

निष्कर्ष:
यह आयोजन न केवल भारत की न्यायिक परंपरा की वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है, बल्कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट को अंतरराष्ट्रीय कानूनी मंच पर ‘ग्लोबल मॉडल’ के रूप में स्थापित करने का ऐतिहासिक अवसर भी बन गया है।

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