
पुरी (ओडिशा): भगवान जगन्नाथ के श्रीमंदिर में इस सप्ताह एक ऐसा भावुक और अविश्वसनीय दृश्य सामने आया, जिसने हर किसी को स्तब्ध कर दिया। एक असहाय पिता अपने कोमा में पड़े बेटे को गोद में लेकर मंदिर पहुंचा, डॉक्टरों ने उसे लगभग मृत घोषित कर दिया था। कहा था—“उसे घर ले जाइए, अब उम्मीद नहीं है।” लेकिन भगवान के सिंहद्वार पर जो हुआ, उसे वहां मौजूद लोग आज भी चमत्कार से कम नहीं बता रहे।
रोते-बिलखते पिता ने भगवान के आगे रख दी आखिरी उम्मीद
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक सोमवार सुबह करीब 40 वर्ष का एक पिता गोद में निष्प्राण-सा पड़ा बच्चा लेकर मंदिर के द्वार पहुंचा। बच्चा देखने में मृत जैसा लग रहा था। पहले सुरक्षाकर्मियों ने रोका, लेकिन पिता के विलाप और पीड़ा को देखकर उन्हें अंदर जाने दिया गया।
वह भीतर पहुंचते ही भगवान जगन्नाथ के सामने बेटे को धरती पर रख जोर-जोर से रोते हुए बोला—
“प्रभु! यही मेरी आखिरी उम्मीद है… मेरे बेटे को बचा लीजिए।”
मंदिर परिसर में मौजूद श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं। पूरा वातावरण दुख और प्रार्थना से भर गया।
10 दिन से कोमा में था बच्चा, डॉक्टरों ने कहा—“बचना मुश्किल”
पिता ने बताया कि उसका बेटा 10 दिनों से आईसीयू में कोमा में था। इलाज के दौरान डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और साफ कह दिया कि अब कुछ नहीं हो सकता। अस्पताल से सीधे वह अपने इकलौते बेटे को नंगे पांव लेकर जगन्नाथ मंदिर पहुंच गया।
गर्भगृह के पास ले जाने की मिली सलाह
मंदिर के सेवायतों ने पिता के दुख से भरे स्वर को सुनकर उसे गर्भगृह के पास जाकर प्रार्थना करने की अनुमति दी।
वह पतितपावन द्वार के सामने बच्चे को हाथ जोड़कर पकड़े खड़ा था। वहां मौजूद कई भक्त और सेवक भी चुपचाप प्रार्थना में शामिल हो गए।
पुजारी ने छिड़का चरणामृत, और हुआ वह जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी
कुछ ही क्षणों बाद मंदिर के पुजारी आए। उन्होंने बच्चे पर चरणामृत छिड़का।
और तभी—ऐसा दृश्य सामने आया, जिसने हर किसी को अवाक कर दिया।
बच्चा धीरे-धीरे सिर हिलाने लगा।
उसने आंखें खोलीं।
और फिर धीमी आवाज में अपने पिता को पुकारा—
“बापदादा…”
पिता वहीं फूट-फूटकर रोने लगा। पूरा मंदिर परिसर भावनाओं से भर गया।
‘चमत्कार’ की चर्चा पूरे पुरी में
जो लोग इस घटना के साक्षी बने, उन्होंने कहा—
“यह भगवान जगन्नाथ की लीला है। हमने अपनी आंखों से चमत्कार होते देखा।”
मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि पिता की आस्था, उसकी वेदना और ईश्वर में अटूट विश्वास ने पूरे वातावरण को भावुक कर दिया था।
जगन्नाथ पुरी की इस घटना ने लोगों के दिलों में फिर यह विश्वास जगा दिया है कि जब इंसान की उम्मीदें टूट जाती हैं, तब भी कहीं न कहीं एक दिव्य शक्ति आशा का दीप जलाए रखती है।