Monday, December 29

राफेल, S-400 और ब्रह्मोस से आगे की जंग: क्या घातक हथियारों का युग ढल रहा है? डिफेंस एक्सपर्ट की चेतावनी—भारत को अपनाना होगा इज़रायल-ईरान मॉडल

 

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आधुनिक युद्ध का चेहरा तेजी से बदल रहा है। राफेल, S-400 और ब्रह्मोस जैसे महंगे और अत्याधुनिक हथियार अब भी अहम हैं, लेकिन क्या वे अकेले भविष्य के युद्ध जिता सकते हैं? रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जवाब “नहीं” है। आने वाले समय में युद्ध का पलड़ा सस्ते लेकिन स्मार्ट हथियारों की ओर झुक चुका है।

 

लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्ण (सेवानिवृत्त) ने यूरेशियन टाइम्स में लिखे विश्लेषण में कहा है कि आज के युद्ध सिर्फ ताकतवर प्लेटफॉर्म से नहीं, बल्कि ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक सिस्टम से तय हो रहे हैं। यही वजह है कि भारत को अब इज़रायल-ईरान और यूक्रेन मॉडल की ओर देखना होगा।

 

हजारों के हथियार, करोड़ों की तबाही

 

विशेषज्ञों के अनुसार, आधुनिक युद्ध में लागत और प्रभाव का गणित उलट चुका है।

अब कुछ हजार डॉलर या कुछ हजार रुपये के ड्रोन, करोड़ों की कीमत वाले टैंक, फाइटर जेट और युद्धपोतों को नष्ट करने में सक्षम हैं।

 

यूक्रेन युद्ध इसका बड़ा उदाहरण है, जहां साधारण क्वाडकॉप्टर ड्रोन ने रूस के भारी टैंकों और बॉम्बर विमानों को नुकसान पहुंचाया। काला सागर में नौसैनिक ड्रोन ने रूस की शक्तिशाली नौसेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। वहीं, रेड सी में हूती विद्रोहियों ने बेहद कम लागत वाले ड्रोन और रॉकेट से वैश्विक शिपिंग रूट्स को बाधित कर दिया।

 

महंगे हथियार जरूरी, लेकिन निर्णायक नहीं

 

लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्ण के मुताबिक, पिछले दशक तक लड़ाकू विमान, टैंक और मिसाइल डिफेंस सिस्टम युद्ध का रुख तय करते थे। आज वे अब भी जरूरी हैं, लेकिन निर्णायक नहीं।

स्थिति यह है कि पांच-दस हजार रुपये के ड्रोन को गिराने के लिए अगर करोड़ों की मिसाइल दागनी पड़े, तो यह रणनीतिक रूप से टिकाऊ नहीं है।

 

चीन-पाकिस्तान की नई चुनौती

 

विश्लेषण में चेतावनी दी गई है कि चीन ने इस बदलाव को सबसे तेजी से समझा है। उसने AI, रोबोटिक्स और ऑटोनॉमस वॉरफेयर में भारी निवेश किया है।

चीन का रक्षा उद्योग बड़े पैमाने पर ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन और ग्राउंड रोबोट तैयार कर रहा है—जिसका सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को मिल रहा है।

 

ड्रोन, निगरानी सिस्टम, AI-आधारित बैटल मैनेजमेंट और ऑटोनॉमस सेंट्री सिस्टम—ये सभी LoC और सीमावर्ती इलाकों में भारत के लिए गंभीर चुनौती बन सकते हैं।

 

भारत को क्या करना होगा?

 

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब प्लेटफॉर्म-आधारित सोच से बाहर निकलना होगा।

जरूरत है—

 

हर इन्फैंट्री यूनिट के पास ड्रोन स्वार्म और पॉकेट जैमर

सस्ते खतरों से निपटने के लिए लेयर्ड डिफेंस सिस्टम

मिसाइल के साथ-साथ सॉफ्ट-किल सिस्टम, जैमर और लेजर हथियार

 

इज़रायल का आयरन बीम लेजर सिस्टम और ईरान के शाहेद ड्रोन इस नई युद्ध रणनीति के प्रभावी उदाहरण हैं।

 

युद्ध का नया सच

 

निष्कर्ष साफ है—

भविष्य के युद्ध सिर्फ राफेल, S-400 और ब्रह्मोस से नहीं, बल्कि सेंसर, सॉफ्टवेयर, ड्रोन और स्मार्ट सिस्टम से जीते जाएंगे।

भारत के लिए यह सिर्फ विकल्प नहीं, बल्कि रणनीतिक मजबूरी बन चुका है।

 

 

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