Monday, December 29

बांग्लादेश चुनाव से पहले ढाका में पाकिस्तानी साज़िश, त्रिशंकु संसद के लिए ISI का चक्रव्यूह

 

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बांग्लादेश के आगामी आम चुनावों से पहले पाकिस्तान की गुप्त गतिविधियां एक बार फिर सुर्खियों में हैं। खुफिया सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ढाका में सक्रिय होकर बांग्लादेश की राजनीति को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। मकसद साफ है—देश में त्रिशंकु संसद बनवाना, ताकि सत्ता पर परोक्ष नियंत्रण कायम किया जा सके।

 

सूत्रों का कहना है कि ढाका स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में चुनाव से संबंधित एक विशेष सेल बनाई गई है, जिसमें ISI के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। यह सेल लगातार पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना विरोधी नेताओं और दलों के संपर्क में है।

 

यूनुस से मुलाकात ने बढ़ाई चिंता

 

हाल ही में बांग्लादेश में पाकिस्तान के उच्चायुक्त की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से मुलाकात ने कूटनीतिक और सुरक्षा हलकों में चिंता बढ़ा दी है। हालांकि बांग्लादेश सरकार ने इसे एक सामान्य राजनयिक मुलाकात बताया, लेकिन चुनावी माहौल और अंतरिम सरकार की सीमित वैधता को देखते हुए इस बैठक को असामान्य माना जा रहा है।

 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिना जनादेश वाली सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह संवेदनशील विदेशी मामलों में संयम बरते, लेकिन यूनुस प्रशासन पर विदेश नीति में बदलाव और भारत-विरोधी रुख अपनाने के आरोप लग रहे हैं।

 

BNP और जमात को गुप्त समर्थन

 

CNN-News18 की रिपोर्ट और खुफिया इनपुट्स के मुताबिक, पाकिस्तान खालिदा जिया की BNP, शफीकुर रहमान के नेतृत्व वाली जमात-ए-इस्लामी और कुछ अन्य भारत-विरोधी दलों को गुप्त रूप से समर्थन दे रहा है। आरोप हैं कि ISI इन दलों को आर्थिक सहायता और रणनीतिक सहयोग उपलब्ध करा रही है।

 

इन गतिविधियों का उद्देश्य चुनावी नतीजों को प्रभावित करना और किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत से रोकना बताया जा रहा है। इससे भविष्य में पाकिस्तान को सत्ता के समीकरणों को पर्दे के पीछे से प्रभावित करने का मौका मिल सकेगा।

 

ढाका पर अंतरराष्ट्रीय निगरानी

 

बताया जा रहा है कि ढाका में मौजूद कई विदेशी राजनयिक मिशन और निगरानी एजेंसियां इन घटनाक्रमों पर करीबी नज़र रखे हुए हैं। हालांकि पाकिस्तान और बांग्लादेश—दोनों की ओर से इन आरोपों पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

 

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न केवल बांग्लादेश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े करेगा, बल्कि दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी गंभीर चुनौती बन सकता है।

 

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