
देश वर्तमान में एक गंभीर पर्यावरण संकट से गुजर रहा है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की हालिया गंभीर स्थिति ने इसे और स्पष्ट कर दिया है। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस अभय एस ओका ने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए हैं और बताया है कि पर्यावरण की सुरक्षा में देश के प्रत्येक नागरिक की भागीदारी जरूरी है।
नागरिकों की भूमिका अहम
जस्टिस ओका ने कहा, “जब देश का हर नागरिक यह समझ जाएगा कि पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार करना उसका कर्तव्य है, तभी असली बदलाव आएगा। अगर यह जिम्मेदारी केवल कुछ एक्टिविस्ट या अदालतों तक सीमित रह जाएगी, तो समस्या बनी रहेगी।”
अधिकारियों और जजों पर दबाव
उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरण की रक्षा के मुद्दों पर काम करने वाले न केवल एक्टिविस्ट बल्कि जज भी निशाना बनते हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में ध्वनि प्रदूषण और पंडाल निर्माण के मामले में जजों पर पक्षपाती होने के आरोप लगाए गए थे। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे आरोप अनुचित और गैर-तथ्यपरक हैं।
संविधान और नीति निदेशक तत्व
जस्टिस ओका ने संविधान के नीति निदेशक तत्वों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि इसमें पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण का विशेष उल्लेख है। राज्य सरकारों को वन, वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण के लिए निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, देश के नागरिकों का भी यह मौलिक कर्तव्य है कि वे प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की सुरक्षा में सक्रिय योगदान दें।
दीर्घकालिक समाधान जरूरी
जस्टिस ओका ने चेताया कि प्रदूषण केवल सीजनल या एक साल की समस्या नहीं है। इसे रोकने के लिए दीर्घकालिक और सतत उपाय अपनाना आवश्यक है। इसका सफल क्रियान्वयन तभी संभव है जब नागरिक संविधान की मूल भावना के अनुरूप अपनी जिम्मेदारी समझें और सक्रिय भूमिका निभाएं।
जस्टिस ओका का यह संदेश स्पष्ट करता है कि पर्यावरण की रक्षा केवल सरकार या कोर्ट की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर भारतीय का व्यक्तिगत दायित्व है।