
बिहार की पहचान अब सिर्फ अनाज या सब्जियों तक सीमित नहीं रहेगी। समस्तीपुर में उगाई जाने वाली हल्दी की खास किस्म ‘राजेंद्र सोनिया’ जल्द ही वैश्विक बाजार में अपनी अलग पहचान बनाने जा रही है। इस हल्दी में 7 से 8 प्रतिशत तक करक्यूमिन (Curcumin) पाया गया है, जो इसे देश की सबसे उच्च गुणवत्ता वाली हल्दी की श्रेणी में शामिल करता है। खास बात यह है कि करक्यूमिन की यह मात्रा मेघालय की प्रसिद्ध GI-टैग प्राप्त लकडोंग हल्दी से भी अधिक है।
इन्हीं खूबियों को देखते हुए ‘राजेंद्र सोनिया’ हल्दी को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग दिलाने की तैयारी तेज हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि GI टैग मिलने के बाद बिहार की यह हल्दी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रीमियम उत्पाद के रूप में उभरेगी।
ODOP के तहत समस्तीपुर बना हल्दी का हब
राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (RPCAU), पूसा द्वारा हाल ही में आयोजित तीन दिवसीय रिसर्च काउंसिल बैठक में ‘हल्दी की क्षमता का उपयोग – बिहार में सुनहरा मसाला’ विषय पर एक पॉलिसी पेपर पेश किया गया। इसमें बताया गया कि समस्तीपुर जिले में हल्दी उत्पादन और करक्यूमिन की मात्रा बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं। इसी कारण समस्तीपुर को केंद्र सरकार की ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP)’ योजना के तहत हल्दी के लिए चुना गया है।
पॉलिसी पेपर में यह भी उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा नेशनल टर्मरिक बोर्ड (NTB) के गठन से हल्दी उत्पादन को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा मिल रहा है, जिसमें बिहार अहम भूमिका निभा सकता है। हल्दी न केवल मसाले के रूप में, बल्कि औषधीय, चिकित्सीय और औद्योगिक उपयोगों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण फसल है।
भारत हल्दी उत्पादन में विश्व में नंबर वन
भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक और निर्यातक है। वर्ष 2024-25 में देश ने 11.16 लाख टन हल्दी का उत्पादन किया, जो वैश्विक आपूर्ति का 70 प्रतिशत से अधिक है। NTB की स्थापना के बाद सरकार ने अगले पांच वर्षों में हल्दी उत्पादन को 20 लाख टन तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है।
करक्यूमिन तय करता है कीमत
देश की अब तक छह हल्दी किस्मों को GI टैग मिल चुका है। वैश्विक बाजार में हल्दी की कीमत तय करने में करक्यूमिन की मात्रा सबसे बड़ा पैमाना मानी जाती है। अंतरराष्ट्रीय खरीदार आमतौर पर 5 प्रतिशत से अधिक करक्यूमिन वाली हल्दी को प्राथमिकता देते हैं, जबकि प्रीमियम बाजार इससे भी अधिक करक्यूमिन वाली किस्मों के लिए ऊंची कीमत चुकाता है।
बिहार में हल्दी की खेती के सुनहरे अवसर
RPCAU की एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट विभाग की विशेषज्ञ ऋतंभरा सिंह के अनुसार, भारत ने 2024 में 1.17 लाख टन हल्दी का निर्यात किया, जिसे और बढ़ाने की बड़ी संभावना है। उन्होंने बताया कि बिहार की जलवायु—गर्म, नम मौसम और उपयुक्त दोमट मिट्टी—हल्दी की खेती के लिए बेहद अनुकूल है।
हालांकि, वर्तमान में बिहार का देश के कुल हल्दी उत्पादन में योगदान एक प्रतिशत से भी कम है, लेकिन ‘राजेंद्र सोनिया’ जैसी उन्नत किस्म इस तस्वीर को बदल सकती है। आज स्थिति यह है कि बिहार से बाहर के राज्यों में भी इस किस्म के बीजों की मांग लगातार बढ़ रही है।
GI टैग मिलने के बाद ‘राजेंद्र सोनिया’ न सिर्फ बिहार के किसानों की आमदनी बढ़ाएगी, बल्कि राज्य को हल्दी उत्पादन के राष्ट्रीय मानचित्र पर एक नई पहचान भी दिलाएगी।