
वॉशिंगटन/नई दिल्ली: जून 1972 में भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के संस्थापक आर.एन. काओ और तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) सैम मानेकशॉ के बीच हुई एक आधिकारिक बातचीत के दस्तावेजों से अमेरिका की दक्षिण एशिया में पाकिस्तान-पक्षधर नीति और भारत को कमजोर करने की रणनीति उजागर हुई है।
डॉक्युमेंट्स के मुताबिक, अमेरिका हमेशा से पाकिस्तान को मजबूत देखना चाहता था ताकि भारत के बढ़ते प्रभाव को संतुलित किया जा सके। काओ ने अपने टॉप सीक्रेट नोट में मानेकशॉ को चेताया था कि अमेरिका और चीन दोनों कश्मीर विवाद पर पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं और इस तनाव को बनाए रखना उनके हित में है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भारत ने दक्षिण एशिया में अपनी सैन्य शक्ति का दावा किया, लेकिन अमेरिका इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था।
CIA की गुप्त गतिविधियां बांग्लादेश में भी:
सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि अमेरिका की गतिविधियां बांग्लादेश में भी सक्रिय रहीं। अक्टूबर 1972 में RAW के वरिष्ठ अधिकारी पी.एन. बनर्जी की गोपनीय रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि CIA ने बांग्लादेश में सरकार विरोधी दलों को फंडिंग की और शीर्ष अधिकारियों तक अपनी पहुंच बनाई। उस समय अमेरिका खुले तौर पर पाकिस्तान की सेना का समर्थन कर रहा था।
भारत-पाकिस्तान रणनीति में अमेरिकी हस्तक्षेप:
भारत के जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट नितिन गोखले के अनुसार, डोनाल्ड ट्रंप के पाकिस्तान-पक्षधर कदम और भारत विरोधी रुख दशकों पुरानी अमेरिकी नीति का हिस्सा हैं। अमेरिका हमेशा से चाहता रहा है कि भारत पड़ोसी देशों के साथ तनाव में बना रहे, ताकि वह क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाए रख सके।
विशेषज्ञों का निष्कर्ष:
50 साल पुराने ये दस्तावेज साबित करते हैं कि अमेरिका का दक्षिण एशिया में पाकिस्तान को मजबूत बनाने और भारत को कमजोर करने का एजेंडा नया नहीं है। वाशिंगटन की यह रणनीति आज भी दक्षिण एशिया की राजनीति में अहम भूमिका निभा रही है।