
वॉशिंगटन/तेल अवीव।
इज़रायल और ईरान के बीच जारी तनाव एक बार फिर खतरनाक मोड़ की ओर बढ़ता दिख रहा है। इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिका को ईरान के खिलाफ नए सिरे से सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार करने की कोशिशों में जुटे हैं। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फिलहाल इस टकराव से दूरी बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इज़रायल की रणनीति अमेरिका को अनचाहे युद्ध में फंसा सकती है।
जून महीने में हुए संघर्ष के बाद ट्रंप यह मान चुके हैं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम काफी हद तक निष्क्रिय हो चुका है। इसी वजह से ईरान उनके मौजूदा विदेश नीति एजेंडे में प्राथमिकता नहीं रह गया है। ऐसे में इज़रायल ने अब अपनी रणनीति बदलते हुए ईरान के परमाणु ठिकानों के बजाय उसकी मिसाइल ताकत को नया खतरा बताकर पेश करना शुरू कर दिया है।
मार-ए-लागो में ट्रंप-नेतन्याहू मुलाकात
रविवार को फ्लोरिडा स्थित ट्रंप के निजी आवास मार-ए-लागो में होने वाली मुलाकात के दौरान नेतन्याहू राष्ट्रपति ट्रंप के सामने ईरान पर हमले का नया प्लान रख सकते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बार इज़रायल का फोकस ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल फैक्ट्रियों और मिसाइल भंडारों को निशाना बनाने पर होगा।
विश्लेषकों का कहना है कि यह रणनीति ट्रंप को यह यकीन दिलाने की कोशिश है कि ईरान अब भी इज़रायल के अस्तित्व के लिए सीधा खतरा बना हुआ है।
ईरान की मिसाइलें बताई जा रही हैं नया खतरा
हाल के दिनों में कई रिपोर्ट्स सामने आई हैं, जिनमें दावा किया गया है कि ईरान तेजी से बैलिस्टिक मिसाइलों का उत्पादन कर रहा है। कुछ आकलनों के अनुसार, किसी संभावित युद्ध की स्थिति में ईरान एक साथ हज़ारों मिसाइलें इज़रायल पर दाग सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इज़रायली अधिकारी और उनके अमेरिकी समर्थक, इस खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर राष्ट्रपति ट्रंप पर दबाव बना रहे हैं, ताकि अमेरिका ईरान के खिलाफ खुलकर युद्ध में उतर जाए।
ट्रंप क्यों नहीं चाहते नई जंग?
हालांकि, अभी तक डोनाल्ड ट्रंप इस दबाव में आते नहीं दिख रहे हैं। उनकी विदेश नीति का फोकस युद्ध के बजाय आर्थिक समझौतों और कूटनीतिक संतुलन पर रहा है।
ईरान द्वारा कतर में अमेरिकी एयरबेस पर हमले के बावजूद ट्रंप ने जवाबी कार्रवाई से परहेज़ किया था, ताकि हालात और न बिगड़ें।
सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी के सीनियर फेलो सीना टूसी के मुताबिक,
“जहां ट्रंप इज़रायल और अरब देशों के बीच आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते मजबूत करना चाहते हैं, वहीं नेतन्याहू पूरे क्षेत्र में सैन्य दबदबा कायम रखने की नीति पर चल रहे हैं।”
पुरानी दुश्मनी, नया मोर्चा
1979 की ईरानी इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान और इज़रायल एक-दूसरे को अस्तित्व के लिए खतरा मानते रहे हैं। ईरान खुले तौर पर इज़रायल को अवैध राज्य मानता है और हमास, हिज़्बुल्लाह तथा हूतियों जैसे संगठनों का समर्थन करता रहा है। वहीं इज़रायल, ईरान को किसी भी सूरत में परमाणु या रणनीतिक बढ़त हासिल नहीं करने देना चाहता।
अब जबकि परमाणु मुद्दे पर ट्रंप संतुष्ट नजर आ रहे हैं, इज़रायल ने ईरान की मिसाइल क्षमता को नया खतरा बनाकर पेश करना शुरू कर दिया है।
क्या अमेरिका फिर फंसेगा युद्ध में?
विशेषज्ञों को आशंका है कि इज़रायल एकतरफा सैन्य कार्रवाई कर अमेरिका को मजबूरन युद्ध में खींच सकता है, जैसा जून के संघर्ष के दौरान हुआ था।
हालांकि ट्रंप प्रशासन के भीतर एक बड़ा वर्ग ईरान के साथ युद्ध के खिलाफ है और टकर कार्लसन व स्टीव बैनन जैसे प्रभावशाली चेहरे भी नई जंग का विरोध कर चुके हैं।
इसके बावजूद, अमेरिकी राजनीति में इज़रायल समर्थक लॉबी का दबदबा और विदेश मंत्री मार्को रुबियो जैसे नेताओं का समर्थन इस संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं करता कि अमेरिका एक बार फिर मध्य-पूर्व के युद्ध में उलझ सकता है।