
नालंदा। बिहार के बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन का नाम बदलने को लेकर सियासी और सामाजिक संग्राम छिड़ गया है। ऐतिहासिक रूप से विवादित शख्सियत मोहम्मद बख्तियार खिलजी के नाम से जुड़े इस शहर और स्टेशन को लेकर विरोध तेज हो गया है, लेकिन इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन आंदोलनकारियों को नहीं मिल सका है। नालंदा जिले में लगातार प्रदर्शन और जनसभाएं हो रही हैं, जिससे मामला और गरमाता जा रहा है।
खिलजी क्यों बना विवाद की जड़
इतिहास में मोहम्मद बख्तियार खिलजी को भारत में एक आक्रांता और विनाशक के रूप में देखा जाता है। ऐतिहासिक ग्रंथ तबकाते-नासिरी के लेखक मिन्हाज-ए-सिराज के अनुसार, 1193 ईस्वी में खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला कर उसे नष्ट कर दिया था। कहा जाता है कि यहां मौजूद पुस्तकों के ढेर में आग लगाई गई, जो महीनों तक जलती रही। नालंदा, विक्रमशीला, सारनाथ और कुशीनगर जैसे विश्वविख्यात शिक्षा केंद्रों के विनाश से उसका नाम जोड़ा जाता है।
यूपी से बिहार तक पहुंचा नाम बदलने का आंदोलन
स्टेशन के नाम बदलने की यह मांग उत्तर प्रदेश में हुए नाम परिवर्तनों के बाद तेज हुई। यूपी में मुगलसराय स्टेशन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन, जायस सिटी स्टेशन का नाम गुरु गोरखनाथ धाम, निहालगढ़ का नाम महाराजा बिजली पासी स्टेशन किए जाने के बाद इसी तरह की मांग बख्तियारपुर में भी उठने लगी।
क्या चाहते हैं आंदोलनकारी
विश्व हिंदू परिषद (VHP), बजरंग दल और अन्य सामाजिक संगठनों का कहना है कि जिस व्यक्ति ने नालंदा विश्वविद्यालय जैसे महान शिक्षा केंद्र को नष्ट किया, उसके नाम पर किसी शहर या स्टेशन का नाम नहीं होना चाहिए। आंदोलनकारियों ने स्टेशन का नाम बदलकर ‘मगध द्वार’ रखने की मांग की है।
इसके अलावा कुछ संगठनों ने इसे स्वतंत्रता सेनानी शील भद्र याजी, धर्मपाल नगर या नीतीश नगर के नाम पर रखने का प्रस्ताव भी रखा है।
मुख्यमंत्री का रुख अलग
वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नाम बदलने के पक्ष में सहमति नहीं जताई है। उनका कहना है कि बख्तियारपुर का नाम बख्तियार खिलजी पर नहीं, बल्कि बख्तियार काकी के नाम पर पड़ा है, और यह उनका जन्मस्थान भी है। इसी कारण उन्होंने नाम परिवर्तन से इनकार किया है।
स्थानीय लोगों में नाराजगी
हालांकि भाजपा नेताओं और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ऐतिहासिक तथ्यों और नालंदा विश्वविद्यालय के विनाश को देखते हुए खिलजी के नाम से जुड़ी पहचान स्वीकार्य नहीं है। उनका कहना है कि स्टेशन और शहर का नाम बिहार की गौरवशाली विरासत से जुड़ा होना चाहिए, न कि किसी आक्रांता से।