Saturday, December 27

समंदर का सिकंदर बनने की ओर चीन, अमेरिकी नौसेना की बढ़ी चिंता एयरक्राफ्ट कैरियर और पनडुब्बी ताकत में भी बराबरी के करीब ड्रैगन

 

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दुनिया के समुद्री संतुलन में बड़ा बदलाव आता दिख रहा है। पेंटागन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की नौसेना (PLA Navy) न केवल जहाजों की संख्या में अमेरिकी नौसेना से आगे निकल चुकी है, बल्कि अब एयरक्राफ्ट कैरियर और पनडुब्बियों जैसी अत्याधुनिक क्षमताओं में भी अमेरिका को चुनौती देने के बेहद करीब पहुंच गई है।

 

फिलहाल अमेरिकी नौसेना के पास 219 युद्धपोत हैं, जबकि चीन के पास यह संख्या बढ़कर 234 हो चुकी है। अब तक यह माना जाता रहा था कि अमेरिका जैसी समुद्री ताकत बनने में चीन को कई दशक लगेंगे, लेकिन बीते कुछ वर्षों में बीजिंग की तेज़ रफ्तार सैन्य तैयारी ने इस धारणा को बदल दिया है।

 

 

एयरक्राफ्ट कैरियर: अमेरिका की बादशाहत को चुनौती

 

इस समय अमेरिकी नौसेना के पास 11 परमाणु ऊर्जा से संचालित एयरक्राफ्ट कैरियर हैं, जो दुनिया के कुल एयरक्राफ्ट कैरियर का लगभग आधा हिस्सा हैं। इनमें 10 निमिट्ज़ क्लास और एक अत्याधुनिक फोर्ड क्लास (USS Gerald R. Ford) कैरियर शामिल है। परमाणु ऊर्जा से चलने के कारण ये महीनों तक समुद्र में तैनात रह सकते हैं।

 

वहीं चीन के पास अभी तीन एयरक्राफ्ट कैरियर—लियाओनिंग, शानडोंग और हाल ही में सेवा में आया फुजियान—मौजूद हैं। खास बात यह है कि फुजियान चीन का पहला स्वदेशी फ्लैट-डेक कैरियर है, जिसमें EMALS (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम) तकनीक लगी है, जो अब तक केवल अमेरिका के पास थी।

 

पेंटागन की रिपोर्ट के अनुसार, चीन का लक्ष्य 2035 तक 9 एयरक्राफ्ट कैरियर तैयार करने का है। हालांकि विशेषज्ञ इस लक्ष्य को अत्यधिक महत्वाकांक्षी मानते हैं, लेकिन वे यह भी स्वीकार करते हैं कि चीन की तेज़ प्रगति अमेरिका के लिए एक गंभीर रणनीतिक चुनौती बन चुकी है।

 

 

पनडुब्बियों में बदलता शक्ति संतुलन

 

पनडुब्बी ताकत के मामले में भी तस्वीर तेज़ी से बदल रही है।

अमेरिकी नौसेना के पास फिलहाल 71 परमाणु पनडुब्बियां हैं, जिनमें बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां (SSBN), अटैक पनडुब्बियां (SSN) और गाइडेड मिसाइल पनडुब्बियां (SSGN) शामिल हैं। लेकिन आने वाले वर्षों में यह संख्या घटकर लगभग 47 रह जाने का अनुमान है।

 

इसके मुकाबले चीन के पास अभी करीब 60 पनडुब्बियां हैं, जिनमें से 48 डीज़ल-इलेक्ट्रिक हैं और 12 परमाणु ऊर्जा से चलती हैं। चीन की कई डीज़ल पनडुब्बियों में AIP (एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन) तकनीक लगी है, जो उन्हें ज्यादा स्टील्थ और लंबे समय तक पानी के भीतर रहने की क्षमता देती है।

 

पेंटागन का अनुमान है कि 2035 तक चीन के पास कुल 80 पनडुब्बियां हो सकती हैं, जिनमें लगभग 20 परमाणु ऊर्जा से संचालित होंगी। टाइप-095 और टाइप-096 जैसी नई चीनी न्यूक्लियर पनडुब्बियों को अमेरिका और रूस की आधुनिक पनडुब्बियों के बराबर माना जा रहा है।

 

 

अमेरिका के लिए बढ़ती रणनीतिक चुनौती

 

हालांकि तकनीक, अनुभव और वैश्विक तैनाती के मामले में अमेरिकी नौसेना अब भी आगे मानी जाती है, लेकिन संख्या और निर्माण की रफ्तार में चीन उसे लगातार दबाव में ला रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही रुझान जारी रहा, तो आने वाले दशक में समुद्री ताकत का संतुलन एशिया-प्रशांत क्षेत्र की ओर झुक सकता है।

 

समंदर में बढ़ती यह प्रतिस्पर्धा सिर्फ अमेरिका और चीन तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया की सामरिक रणनीति पर पड़ना तय है।

 

 

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