
भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से प्रस्तावित व्यापार समझौते (ट्रेड डील) पर सहमति लगभग बन चुकी है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक मंजूरी के अभाव में यह डील अटकी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस देरी ने नई दिल्ली में निराशा और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया है।
सीएनबीसी टीवी18 से बातचीत में द एशिया ग्रुप में पार्टनर और इंडिया प्रैक्टिस के चेयर अशोक मलिक ने दावा किया कि भारत-अमेरिका ट्रेड डील वर्किंग लेवल पर लगभग फाइनल हो चुकी है। दोनों देशों के अधिकारी समझौते के ढांचे से संतुष्ट हैं और अधिकांश मुद्दों पर सहमति बन चुकी है। अब केवल अंतिम राजनीतिक फैसले का इंतजार है, जो फिलहाल राष्ट्रपति ट्रंप के दफ्तर में लंबित है।
‘बातचीत पूरी, फैसला बाकी’
अशोक मलिक के अनुसार, दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से बातचीत और मोलभाव चल रहा था, जिसमें आगे बढ़ने के लिए जरूरी शर्तों पर सहमति बन चुकी है।
उन्होंने कहा, “वर्किंग लेवल के अधिकारियों का मानना है कि डील आगे बढ़ सकती है, लेकिन अंतिम फैसला राष्ट्रपति को लेना है।”
रूस से जुड़े टैरिफ बने बड़ी बाधा
विशेषज्ञों का कहना है कि इस डील में सबसे बड़ा अड़ंगा रूस से जुड़े सैंक्शन टैरिफ को लेकर है। अमेरिका को यह तय करना है कि भारत के साथ व्यापार समझौते में इन टैरिफ को किस तरह शामिल किया जाए या उन्हें जारी रखा जाए।
अशोक मलिक ने कहा कि ट्रंप की नीति में स्पष्टता की कमी के कारण यह समझौता लटका हुआ है।
देरी के दिखने लगे राजनीतिक संकेत
ट्रंप के दफ्तर से हो रही इस देरी का असर अब भारत में भी महसूस किया जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके राजनीतिक और रणनीतिक नतीजे सामने आने लगे हैं।
यदि जल्द कोई ठोस प्रगति नहीं होती, तो भारत अपने आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को लेकर नए विकल्पों पर विचार कर सकता है।
दिल्ली से हो सकता है बड़ा फैसला
अशोक मलिक का कहना है कि ट्रेड डील तब तक पूरी नहीं मानी जा सकती, जब तक उसका औपचारिक ऐलान न हो जाए।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर आने वाले दिनों में अमेरिका की ओर से कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता, तो नई दिल्ली अपनी रणनीति पर दोबारा विचार कर सकती है और कुछ बड़े फैसले ले सकती है।