
कई बार लोगों के मन में यह भ्रम बैठ जाता है कि अगर प्रेग्नेंट महिला का वजन ज्यादा है तो नॉर्मल डिलीवरी संभव नहीं। हाल ही में एक मामला सामने आया, जिसने इस धारणा को पूरी तरह बदल दिया।
एक प्रेग्नेंट महिला अपनी ननद के साथ चेकअप के लिए डॉक्टर के पास गई, जहां ननद ने ताना मारते हुए कहा, “इतनी मोटी है, इसकी नॉर्मल डिलीवरी हो पाएगी?”
डॉक्टर ने क्या कहा
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शैफाली दधीचि ने तुरंत स्थिति की जांच की और ननद को समझाया कि महिला की एक्टिविटी और स्वास्थ्य हालात ज्यादा मायने रखते हैं, वजन नहीं। उन्होंने महिला को नॉर्मल डिलीवरी के लिए एडमिट करने की सलाह दी।
नॉर्मल डिलीवरी किन बातों पर निर्भर करती है
डॉ. दधीचि के अनुसार, नॉर्मल डिलीवरी ‘पीपीपी’ पर निर्भर करती है:
- पी (Power) – यूट्रस की ताकत: लेबर पेन की तीव्रता और यूट्रस का सही तरह से ओपन होना।
- पी (Passage) – हड्डियों का रास्ता: पेल्विस और जॉइंट्स की फ्लेक्सिबिलिटी।
- पी (Passenger) – बच्चे की स्थिति: बेबी का वजन, उसकी पोजीशन और सिर की स्थिति।
इसलिए, महिला का वजन केवल एक फैक्टर है और नॉर्मल डिलीवरी को तय करने वाला मुख्य तत्व नहीं।
परिवार और एक्टिविटी का महत्व
डॉक्टर ने बताया कि प्रेग्नेंसी के दौरान महिला को सक्रिय रखना जरूरी है। झाड़ू-पोंछा या हल्की एक्सरसाइज करने से जॉइंट्स फ्लेक्सिबल रहते हैं और पुश करने में आसानी होती है। इसके साथ ही परिवार का सपोर्ट और महिला का हौसला भी नॉर्मल डिलीवरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्ष
चाहे महिला का वजन सवा सौ किलो भी क्यों न हो, नॉर्मल डिलीवरी संभव है। बस जरूरत है सही जांच, एक्टिविटी और परिवार के सहयोग की। वजन पर आधारित ताने और गलत धारणाएं महिला को डिमोटिवेट कर सकती हैं, इसलिए सही जानकारी और सपोर्ट बेहद जरूरी है।