
नई दिल्ली: बिना किसी अपराध के जेल में सजा काटना किसी इंसान के लिए किसी भारी पत्थर से कम नहीं। गोधरा में चार साल की बच्ची से रेप के आरोप में एक शख्स को 13 साल तक जेल में रहना पड़ा, जबकि वह पूरी तरह निर्दोष था। अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया और स्पष्ट किया कि इस मामले में आरोपी बेगुनाह था।
गलत जांच और न्याय व्यवस्था की विफलता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में बेहद खराब जांच की और असली दोषी को बचाने के लिए आरोपी के खिलाफ मनगढ़ंत कहानी बनाई गई। निचली अदालतों ने प्रॉसिक्यूशन की बात बिना जांचे मान ली, जिससे सच छिप गया। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने 2013 में गोधरा में इस लड़की के यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी को बरी किया।
न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जब जांच इस तरह की जाती है कि उसका मूल मकसद ही धोखा दे, तो न केवल पीड़ित और आरोपी बल्कि पूरी न्याय व्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ता है। ट्रायल अक्सर सच्चाई की तलाश से हटकर सिर्फ एक मशीनी प्रक्रिया बन जाता है, जो समाज में असुरक्षा और भय का संदेश देता है।
कानून का असली मकसद
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक कानून कमजोरों की रक्षा के लिए ढाल बनना चाहिए, लेकिन अनजाने में यह क्रूरता का हथियार बन सकता है। इस मामले ने न्याय की कमी और लापरवाही के कारण लोगों के भरोसे को झकझोरने का काम किया।